जो लोग उत्तराखंड आपदा में राहत कार्यों में मदद कर रहे हैं उनसे एक विनम्र विनती है ...
कृपया ध्यान दें ...
अधिकांशत: लोग राहत सामग्री लेकर केदारनाथ घाटी की तरफ ही जा रहे हैं ...जो लोग पहाड़ों की भौगोलिक और सामाजिक स्थिति को नहीं समझते उनके लिए यह सामान्य है कि जैसा उन्होंने समाचार चैनलों के माध्यम से जाना है वे लोग यहाँ के लिए निकल पड़े हैं।
कुछ बातें ध्यान दें...
बचाव का कार्य केदारघाटी में 22 जून शाम को ही पूरा हो गया था ...गौरी-कुंड पैदल या सड़क मार्ग से इसी दिन सभी लोग निकल लिए गए थे और गुप्तकाशी के सरकारी स्कूल, कुछ प्राइवेट स्कूल और आश्रमों में जिसको कि आपदा पीड़ितों के ठहरने का स्थान बनाया गया था वह भी इसी दिन अमूमन खाली हो गया था ।
23 जून को गुप्तकाशी बाज़ार में कुछ मीडिया कर्मियों व LOCAL VOLUNTEERS के साथ जो कुछ लोग बचे थे वह अधिकांशत वह लोग थे जो अपने परिजनों को ढूँढ़ते हुए वहां पहुंचे थे .
हकीक़त यह है कि ...
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सरकार की तरफ से D.M भी पहली बार 23 जून को ही गुप्तकाशी पहुंचे हैं |
और राहत सामग्री की गाड़ियाँ भी विभिन्न संगठनों के द्वारा यहाँ 23 जून को सुबह 7 बजे के बाद पहुंचनी शुरू हुयी हैं चाहे वह बाबा रामदेव व बजाज फाउंडेशन के 7 ट्रक हों या विभिन्न छोटे बड़े संगठनों के लगभग 24 गाड़ियाँ व परिवहन विभाग द्वारा लगायी गयी 100 से अधिक गाड़ियाँ ...
जो कि तब पहुंचे जब यहाँ पर उनकी ज़रुरत नहीं थी ...
नतीजन...
----- आधी से अधिक गाड़ियों को यहाँ से वापस भिजवाना पड़ा ... जो लोग सामाग्री बाँट रहे हैं वो जबरदस्ती गाड़ियों में बचे- कुचे यात्रियों व लोकल लोगों को ठूंस ठूंस कर दे रहे हैं ...
------बाकी कुछ लोगों ने अपने बैनर लगवाकर सड़क के किनारे जहग जगह इस्टॉल लगा लिए हैं और चूँकि वहां सामग्री लेने वाले पीड़ित नहीं पहुँच रहे हैं इसलिए यहाँ पर कुछ लोगों ने राहत सामग्री दुकानदारों के हवाले कर दी है ...
दोस्तों अब तक के आंकड़ों के अनुसार केदार घाटी में ही सबसे अधिक जनहानि हुयी हैं।।। ...
गुप्तकाशी के आसपास और सोनप्रयाग तक कोई गाँव ऐसा नहीं बचा है जहाँ से कम से कम 10 लोगों की मौत न हुयी हो , लम्ब्गौंडी जैसे गाँव में 27 लोगों की मौत हुयी है ,बाडसू तो आधा गाँव ही खाली हो गया है
विडम्बना है कि सभी राहत शिविर मुख्यमार्ग के किनारे ही लगाये जा रहे हैं ...
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जिन घरवालों ने अपना आदमी खो दिया और जिन गाँव में मातम है वो लोग राहत सामग्री लेने पैदल चलकर सड़क तक आने की स्थिति में नहीं हैं ... उनकी अभी तक कोई सुध नहीं ले रहा है ...
अत: आपसे अनुरोध है कि यदि आप सार्थक पहल करना चाहते हैं तो गाँवों का पर्याप्त sarvey करके राहत सामग्री वहां तक पहुँचाने का कष्ट करें ...इस क्षेत्र में यात्री अब पूरी तरह निकाल लिए गए हैं इसलिए बिस्किट और पानी के बजाये दाल-चावल,आटा और तेल मसालों के रूप में सामग्री भेजे तो सार्थक होगा।
पिंडर घाटी में भवनों को ज्यदा क्षति पहुंची है 70 से अधिक परिवार बेघर हुए हैं और प्रशासन ने मात्र 2700 रुपये देकर उनको उनके हाल पर छोड़ दिया है जो लोग टेंट या कम्बल के साथ सामग्री लेकर जा रहे हैं वे उस तरफ जा सकते हैं ...।
आपदा राहत सामग्री लोगों ने मदद के लिए भेजी है उसको बर्बाद न होने दें।
साभार मित्र : Sn Ranjeet
जिन घरवालों ने अपना आदमी खो दिया और जिन गाँव में मातम है वो लोग राहत सामग्री लेने पैदल चलकर सड़क तक आने की स्थिति में नहीं हैं ... उनकी अभी तक कोई सुध नहीं ले रहा है ...
अत: आपसे अनुरोध है कि यदि आप सार्थक पहल करना चाहते हैं तो गाँवों का पर्याप्त sarvey करके राहत सामग्री वहां तक पहुँचाने का कष्ट करें ...इस क्षेत्र में यात्री अब पूरी तरह निकाल लिए गए हैं इसलिए बिस्किट और पानी के बजाये दाल-चावल,आटा और तेल मसालों के रूप में सामग्री भेजे तो सार्थक होगा।
पिंडर घाटी में भवनों को ज्यदा क्षति पहुंची है 70 से अधिक परिवार बेघर हुए हैं और प्रशासन ने मात्र 2700 रुपये देकर उनको उनके हाल पर छोड़ दिया है जो लोग टेंट या कम्बल के साथ सामग्री लेकर जा रहे हैं वे उस तरफ जा सकते हैं ...।
आपदा राहत सामग्री लोगों ने मदद के लिए भेजी है उसको बर्बाद न होने दें।
साभार मित्र : Sn Ranjeet
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