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Thursday, June 27, 2013

उत्तराखंड में सरकारी अनदेखी पर बोले, क्या हमें चीन चले जाना चाहिए?

उत्तराखंड में सरकारी अनदेखी पर बोले, क्या हमें चीन चले जाना चाहिए?


पूनम पाण्डे
देहरादून।।
 शाम के करीब 4 बजे मेरा मोबाइल फोन बजा। देखा तो नंबर कुछ अजीब सा था। मैं जौलीग्रांट में आपदा में लापता लोगों के परिजनों से बात कर रही थी, सोचा कि फोन न उठाऊं, लेकिन जब उठाया और बात की तो मैं सन्न रह गई। मेरे पास कोई जवाब नहीं रहा।

फोन उठाने पर आवाज आई, हेलो मैडम, आप पत्रकार हैं ना। मैंने कहा, हां... सामने से आवाज आई मैं नांगलिंग से हरीश भंडारी बोल रहा हूं। आप लोग केदारनाथ, बद्रीनाथ सबके बारे में तो बता रहे हैं लेकिन हम लोगों की तरफ किसी का ध्यान नहीं जा रहा। हम यहां 17 जून से फंसे हुए हैं। 400 लोग गांव के हैं और करीब 40 टूरिस्ट हैं। क्या हमारी जिंदगी की कोई कीमत नहीं है? हमारे पास खाने-पीने के लिए कुछ नहीं है। बूढ़े और बच्चे बीमार पड़ने लगे हैं। हमारा सारा अनाज खत्म हो गया है। सब रास्ते टूट गए हैं। हमें यहां हेलिकॉप्टर तो उड़ते हुए दिखते हैं, लेकिन कोई हमें लेने नहीं आता, न ही कोई खाने पीने का सामान गिराता है। क्या हम इस देश के नागरिक नहीं हैं... क्या हमें चीन चले जाना चाहिए?

मैंने पूछा कि अगर वहां कुछ साधन नहीं हैं तो आप फोन कैसे कर रहे हैं? हरीश ने बताया कि गांव में एक शख्स के पास सैटेलाइट फोन है तो मैं उसी से फोन कर रहा हूं। कहीं से आपका नंबर मिल गया तो ट्राई कर लिया। मेरे पास उसके सवालों का कोई जवाब नहीं था। बस इतना कह पाई कि जरूर आपके बारे में भी देश को बताएंगे। उसने आगे कहा कि आज हमें गांव वाला होने और साहब न होने पर तरस आ रहा है।
हरीश ने कहा कि गांव के एक आईपीएस को तो हेलिकॉप्टर भेज कर 4 दिन पहले ही बचा लिया गया लेकिन हमारे लिए कोई नहीं आया। क्या आप सब वीआईपी की ही सुनते हैं? उसकी बात सुनकर मैं कुछ देर के लिए भूल गई कि मैं जौलीग्रांट में खड़ी हूं।

नांगलिंग पिथौरागढ़ जिले में धारचूला से आगे चीन बॉर्डर पर बसा एक गांव है। नांगलिंग की तरह ही यहां चल गांव, सेला, बालिंग में भी सैकड़ों लोग फंसे हैं, जिन तक कोई मदद नहीं पहुंच पा रही है।

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