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Thursday, June 19, 2014

अब तथागत गौतम बुद्ध का भगवाकरण करने की नापाक कोशिश

अब तथागत गौतम बुद्ध का भगवाकरण करने की नापाक कोशिश

अब तथागत गौतम बुद्ध का भगवाकरण करने की नापाक कोशिश


अशोक कुमार सिद्धार्थ

जिस प्रकार से राजनीति का भगवाकरण करके राजसत्ता का लालच देकर बहुजन समाज का कल्याण करने का दंभ भरने वालों को अपनी तथाकथित बानरसेना का अंग बना लिया है और अब राम राज्य लाने की कोशिश की जाएगी। ये लोग उसी रामराज्य की बात कर रहे हैं जिसमें समाज के दबे कुचले तबके और अपने समाज को जागृत करने का करने वाले महान ऋषि शंबूक का वध मात्र इसलिए कर दिया गया क्योंकि उसने वैदिक धर्म को न मान कर सबको आत्म ज्ञान कराने की कोशिश की और उसका कारण यह दिया गया कि इसके इस प्रकार के समाज जागरण से एक ब्रहमाण का पुत्र अल्प आयु में मर गया। तनिक भी विचार करने की कोशिश नहीं की गयी कि एक ब्राह्मण के बालक की मृत्यु और जन जागरण का क्या संयोग है। ये सजा उनको इसलिए मिली क्योंकि वो नीची जाति का होते हुये भी ज्ञान प्राप्त करने की कोशिश कर रहे थे, जबकि ज्ञान तो तथाकथित ब्राह्मणों की बपौती थी धर्म-शास्त्र के नियमानुसार।
ये लोग समानता की बात करते हैं तो हमे थोड़ा संदेह होता है क्योंकि जिनकी सारी राजसत्ता ही असमानता के कारोबार पर टिकी है। जाति पर राजनीति करने का आरोप लगाने वाले खुद ही अपनी जाति की वजह से बहुत जगहों पर काबिज हैं। इसका जीता जागता उदाहरण यहाँ के हिन्दू मंदिर हैं। इन सभी मंदिरों के ठेकेदार एक विशेष समुदाय के लोग हैं। क्या भारत के प्रधानमंत्री वहाँ पर समानता लागू करने का प्रयत्न करेंगे। हमको तो नहीं लगता क्योंकि वो भी उसी वृक्ष के फल–फूल खाकर बड़े हुये हैं। उनकी मंडली ने अभी हाल ही में घोषणा की है कि सबसे पहले भारत के इतिहास का पुनर्मूल्यांकन करने का काम किया जाएगा। हमको लगता है कि ये काम चालू भी कर दिया है लेकिन उनकी सबसे पहली नजर सदा से अपने विरोधी मानने वालों पर ही हैं। जब वैदिक धर्म का अत्याचार चरमोत्कर्ष पर था उस समय इसका विरोध कर नए धर्म की स्थापना की उनका नाम तथागत गौतम बुद्ध था। लेकिन जब उन्होंने समाज में समरसता फैलाने की कोशिश की तो इन धर्म के ठेकेदारों ने उन्हे गालियों से नवाजा जिसके कुछ उदाहरण ये हैं –
  1. याज्ञवल्क्य ने घोषणा किया कि सपने तक में किसी बौद्ध सन्यासी का दर्शन पाप है और इससे बचने का प्रयास करना चाहिए।
  2. ब्रह्मपुराण में यह लिखा गया है कि अत्यधिक संकट आ जाने पर भी किसी ब्राह्मण को किसी बौद्ध के घर नहीं जाना चाहिए क्योंकि इससे वह महापाप का भागी होगा।
3. अग्नि पुराण मे उल्लेख है कि शुद्धोदन के पुत्र (बुद्ध) ने दैत्यों को बौद्ध बनाने के लिए बहकाया।
4. विष्णु पुराण में बुद्ध को महाप्रलोभनकारी घोषित करते हुये कहा गया है कि वह ‘महामोह’ है जो राक्षसों को छलने के लिए संसार मे आया है।
5. भविष्य पुराण मे बुद्ध को असुर (राक्षस) कहा गया है-
बलिना प्रेषितो भूमौ ,मय: प्राप्तो महासुर:।
शक्यसिंघ गुरूरगयो,बहुमाया प्रवर्तक :।। ३० ।।
स नाम्ना गौतमचार्या , दैत्य पक्ष विवर्धक : ।
सर्व तीर्थेशु तेनेव,यंत्राणि स्थापितानि वै ।।३१।।
तेषामगधोगता येतु , बौद्धश्यचसंसमंतत: ।
शिखा सूत्र विहिनाश्च, बभुर्ववर्णसंकरा ।। ३२ ।।
दश कोट्य स्मृता आर्या ,बूभावुरबौद्ध मार्गीण : ।। ३३।।
—-भविष्य पुराण ,प्रतिसर्ग पर्व ४ ,अं॰२०
(बलि ने पृथ्वी पर एक माया प्रवर्तक महान असुर को भेजा जो शक्यसिंघ के नाम से विख्यात हुआ,उसे गौतम आचार्य भी कहते थे। वह दैत्यों के पक्ष को बढ़ाने वाला था। उसने सभी तीर्थों में अपनी संस्था स्थापित की। जो लोग उसके मतानुयायी बौद्ध बने वे चोटी और जनेऊ से हीन एवं नीच गति को प्राप्त होकर वर्णसंकर हो गए। दस करोड़ आर्य बौद्ध अनुगामी हो गए। )
6. वाल्मीकि रामायण मे कहा गया है कि –
यथा हि चोर: स तथा हि बुद्दस्त्थगतन नास्तिकमतत्र विद्धि।
तस्माद्धि य: शक्यतम: प्रजानाम स नास्तिके नाभिमूखा बुध : स्यात ।।
वाल्मीकि रामायण ,गीता प्रेस गोरखपुर ॰
अयोध्याकाण्ड सर्ग १०९,श्लोक नंबर ३४
(जैसे चोर (डाकू) दंडनीय होता है, उसी प्रकार (वेदविरोधी) बुद्ध (बौद्धमतावलंबी) भी दंडनीय होता है। तथागत (नास्तिक विशेष ) और (चार्वाक सद्र्श) अन्य नास्तिकों को भी इसी कोटि में समझना चाहिए। इसलिए प्रजा पर अनुग्रह करने के लिए राजा द्वारा जिस नास्तिक को दंड दिया जा सके, उसे तो चोर के समान दंड दिलाया जाय, परंतु जो वश के बाहर हो, उस नास्तिक के प्रति विद्वान ब्राह्मण कभी उन्मुख न हो, उससे वार्तालाप न करें। )
ऊपर दिये गए साक्ष्यों के बाद भी, अब फिर से इन लोगों को बहुजनों को बेवकूफ़ बनाने की सूझी है। कुछ वर्षों से लगातार ये संगठन एवं इनके गुर्गे ये प्रचारित करने मे लगे हुये हैं कि बुद्ध, भगवान विष्णु के नवें अवतार थे।
अभी कुछ दिनों पहले बुद्ध पूर्णिमा के दिन गया में बजरंग दल एवं विश्व हिन्दू परिषद के द्वारा बुद्ध पूर्णिमा मनाने का ढोंग किया गया और ये कहा गया कि बुद्ध बुद्ध को हिन्दू धर्म मे दशवतार के रूप मे पूजा जाता है (दैनिक प्रभात खबर, गया संस्करण,15 मई 2014पेज न॰05 ) । लेकिन हमें यह समझ में नहीं आता है यदि बुद्ध को हिन्दू धर्म मे दशावतार के रूप में पूजा जाता है तो भारत में हिन्दू धर्म के कैलेंडरों मे बुद्ध के चित्र क्यों नहीं हैं ?बुद्ध का कोई भी एक मंदिर नहीं होगा जिसमें बुद्ध के साथ ब्रह्मा विष्णु महेश की मूर्ति हो। हिन्दुओं के घर–घर में बुद्ध के कैलेंडर या मूर्ति क्यों नहीं है ? ऐसे बहुत सारे सवाल हैं जिनका उत्तर मिलना संभव नहीं है। इसलिए हम सभी बुद्धजीवियों और बहुजनों को आगाह करना चाहते हैं कि जरा आंखे खोलकर चले अब अंधभक्त बनकर विश्वास करना छोड़ दें।
हमें तो सबसे ज्यादा आश्चर्य बौद्ध धर्म के ठेकेदारों पर होता है जो अपने आपको बुद्ध का उत्तराधिकारी घोषित करते हैं तथा कुछ सालों से गया के बुद्ध विहार को ब्राह्मणवादियों से मुक्त कराने का संकल्प ले रखा है। क्या उन्हें इसकी खबर नहीं है ? यदि है तो उन्होंने अभी तक इसका विरोध क्यों नहीं किया। मुझे तो उनकी भी कार्यशैली पर संदेह होता है। लगता है वो भी एक पुष्यमित्र को हटाकर, खुद को महाधिराज घोषित करने की कोशिश कर रहे हैं।

About The Author

अशोक कुमार सिद्धार्थ, गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय में परास्नातक (इलैक्ट्रिकल इंजीनियरिंग ) के विद्यार्थी हैं


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