आर्थिक सत्यानाश की तैयारी
पलाश विश्वास
सभी पूर्वानुमानों से अधिक होगी आर्थिक वृद्धि दरः प्रणव
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बाजार, इकॉनमी, रेल बजट अपडेट 1435 hrs IST 1049 hrs IST 0931 hrs IST 1018 hrs IST 0927 hrs IST 1000 hrs IST 1608 hrs IST 1138 hrs IST 1132 hrs IST 1106 hrs IST 1620 hrs IST 1443 hrs IST 1255 hrs IST 1247 hrs IST 1256 hrs IST 1230 hrs IST 1124 hrs IST 1544 hrs IST 1354 hrs IST 1240 hrs IST 1103 hrs IST 0955 hrs IST 0914 hrs IST 1618 hrs IST 1330 hrs IST इकनॉमिक सर्वे 2009-10: यहां जानिए मुख्य बातें 2009-10 की आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि अगले 4 साल में भारत सबसे तेजी से विकास कर रही अर्थव्यवस्थाओं में होगा। और क्या क्या खास जानिए यहां... सचिन के बल्ले में आज भी है वही दम: इमरान खान सचिन भले ही अपने 37वें जन्मदिन की ओर बढ़ रहे हों, लेकिन 200 रनों की उनकी नाबाद पारी फिटनेस और क्रिकेट को लेकर उनकी प्रतिबद्धता का सबूत है... |
PMEC ने की परमाणु ऊर्जा में निजी सेक्टर को शामिल करने की वकालत
20 Feb 2010, 1618 hrs IST, इकनॉमिक टाइम्स
परमाणु ऊर्जा को जरूरत बताते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि इसके लिए जरूरी रेगुलेटरी बदलाव किए जाने चाहिए ताकि इस सेक्टर में निवेश करने के लिए उत्साह दिखा रही निजी सेक्टर की कंपनियां कारोबार शुरू कर सकें। रिपोर्ट में दो अवरोधों की भी बात की गई है। सीमित ऊर्जा उपकरण और संसाधनों के आवंटन में होने वाली देरी को प्रमुख बाधा माना गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इन दिक्कतों के चलते क्षमता बढ़ाने में मुश्किल हो रही है।
रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि वितरण के दौरान पावर लॉस कम करने के लिए जरूरी निवेश और चरणबद्ध बदलाव होने चाहिए। रिपोर्ट के मुताबिक, 'पावर कारोबार को वित्तीय रूप से मुनाफा देने वाला बनाने के लिए यह एक पूर्व शर्त है। इससे निवेश बढ़ाने में भी मदद मिलेगी।' पीएमईएसी के चेयरमैन सी रंगराजन ने अर्थव्यवस्था की समीक्षा 2009-10 जारी की। इसमें कहा गया है, 'रेगुलेटरी नियमों में तत्काल बदलाव करने की जरूरत है ताकि जो निजी कंपनियां परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में काम करना चाहती हैं, वे कारोबार शुरू कर सकें।' देश में परमाणु ऊर्जा सेक्टर इस वक्त काफी नियामक बंदिशों में है। इस वजह से इस सेक्टर में केवल एक सरकारी कंपनी न्यूक्लियर पावर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एनपीसीआईएल) ही काम कर रही है। मौजूदा नियमों के मुताबिक, एनपीसीआईएल के बिना कोई भी कंपनी परमाणु ऊर्जा के सेक्टर में काम नहीं कर सकती है। परमाणु ऊर्जा एक्ट के मुताबिक, निजी कंपनियां एनपीसीआईएल के साथ छोटे पार्टनर के तौर पर भागीदारी कर परमाणु संयंत्र लगा सकती हैं।
देश में कुल परमाणु ऊर्जा उत्पादन बमुश्किल 4,120 मेगावाट है। सरकार की योजना साल 2012 तक इसे बढ़ाकर 10,000 मेगावाट तक पहुंचाने की है। भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौते ने देश में परमाणु ऊर्जा उत्पादन की क्षमता में बढ़ोतरी का मार्ग खोल दिया है। अब सरकार को उम्मीद है कि देश में साल 2020 तक 40,000 मेगावाट ऊर्जा का उत्पादन होने लगेगा। रिपोर्ट में कहा गया है, 'यह बात ध्यान रखने योग्य है कि हम कच्चे तेल के आयातक हैं। कच्चे तेल की कीमतों में पिछले कुछ साल में तेज उछाल आया है और यह प्रक्रिया जारी है। ऐसे में सबसे जरूरी यह है कि हम परमाणु ऊर्जा इंडस्ट्री को मजबूत बनाएं ताकि इसका ऊर्जा उत्पादन में योगदान बढ़ाया जा सके। इस वक्त परमाणु ऊर्जा का कुल ऊर्जा उत्पादन में योगदान केवल दो फीसदी है। इसे कई गुना बढ़ाया जा सकता है।'
रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकारी और निजी कंपनियों को ऊर्जा सेक्टर में अपने किए जा रहे प्रयासों में तेजी लानी चाहिए। रिपोर्ट में कहा गया है कि क्षमता विस्तार में पिछले कुछ साल में अच्छा सुधार आया है। 11वीं पंचवर्षीय योजना में कुल क्षमता का एक-तिहाई हिस्सा निजी कंपनियों की ओर से आ सकता है। सकार का लक्ष्य 11वें प्लान में 78,500 मेगावाट की अतिरिक्त क्षमता हासिल करने की है। इसमें से 30,00 मेगावाट निजी सेक्टर से आने की उम्मीद है।
आज जारी आर्थिक सर्वे से सत्यनाश की पूरी तैयारी हो गई है.भारतीय कंपनियां अपने डर के कारण वैश्विक मौके खो रही हैं और बदलाव के विरोध के कारण उन्हें घरेलू स्तर पर वृद्धि में मुश्किल हो
पूँजीपतियों को स्तिमुलुस जारी चार लाख करोर का, जबकि गरीबो पर टैक्स के बोझ.आम बजट पेश किए जाने से बमुश्किल एक हफ्ता पहले शुक्रवार को प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद
इस खास पहल के तहत न सिर्फ पाठकों को बजट को लेकर अपनी उम्मीदों को जाहिर करने का मौका मिलेगा, बल्कि वे बजट पेश किए जाने के बाद भी economictimes.com पर अपनी राय दे सकेंगे। जाहिर है कि हमारे पाठक इस मंच के जरिए आसानी से वित्त मंत्री तक अपनी पहुंच बना सकते हैं और उन्हें बता सकते हैं कि बजट में समाज के विभिन्न तबके के लिए और क्या किया जा सकता है। पाठकों द्वारा जाहिर की गई राय economictimes.com के अलावा उनके फेसबुक पेज पर दिखेगी। इस पहल के तहत दी गई सभी राय का सार तैयार कर इसे वित्त मंत्री तक पहुंचाया जाएगा।
इस मंच के जरिए छात्र, कामकाजी महिलाएं, वेतनभोगियों और कारोबारियों के लिए भारत के नीति-निर्माताओं तक अपनी बात पहुंचाने का मौका है। इस समझौते पर टाइम्स इंटरनेट लिमिटेड के सीईओ ऋषि खियानी ने कहा, 'फेसबुक के साथ जुड़कर हमें काफी खुशी हो रही है। भारत की प्रमुख बिजनेस वेबसाइट और सबसे लोकप्रिय सोशल नेटवर्किंग साइट के बीच समझौता हमारे लिए हर तरफ से जीत का गठबंधन है।'
सी रंगराजन की अगुवाई वाली पीएमईएसी का मानना है कि मौजूदा साल में जीडीपी वृद्धि दर 7.2 फीसदी के पूर्वानुमान से ज्यादा रह सकती है। इसने दूसरे अनुमानों की तर्ज पर 2010-11 में जीडीपी ग्रोथ रेट 8.2 फीसदी रहने की भविष्यवाणी की है।
सीआरआर बढ़ाने के आरबीआई के कदम पर गौर करते हुए ईएसी ने कहा कि आगे उठाए जाने वाले कदम इस बात पर निर्भर करेंगे कि कर्ज की मांग में कितना इजाफा होता है, तरलता से जुड़े हालात कैसे रहते हैं और कीमतों पर कितना दबाव पड़ता है। वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी के सामने मुश्किल एजेंडा रखते हुए परिषद ने कहा, 'बीते दो साल में जो भारी-भरकम राजकोषीय घाटा सामने आया है, सरकार आगे भी उसे जारी रहने नहीं दे सकती और आगामी करोबारी साल में ही राजकोषीय मोर्चे पर सख्ती की कोशिशें अमल में लानी होंगी।' सरकार ने जुलाई 2009 में तय किया था कि 2011-12 के लिए राजकोषीय घाटा 5.5 फीसदी तक ही रखा जाएगा। ईएसी ने चेतावनी दी है कि इतने भारी घाटे के चलते ब्याज दरें बढ़ सकती हैं और मौद्रिक नीति पर दबाव आ सकता है।
हालांकि, उसने यह भी कहा कि राजकोषीय घाटे में बढ़ोतरी का अधिकांश हिस्सा खर्च के कारण है, ऐसे में खर्च कम करने का लक्ष्य भी बनाया जाना चाहिए और इसे जीडीपी के 1 फीसदी तक लाया जा सकता है। परिषद ने यह चेतावनी भी दी कि पूंजीगत खर्च में कटौती करने की कोई गुंजाइश नहीं है। दिलचस्प है कि ईएसी ने राजकोषीय राहत उपाय वापस लेने की पृष्ठभूमि में टैक्स में इजाफे का मशविरा नहीं दिया, बल्कि इसे जीएसटी लागू करने रोडमैप के तौर पर दिखाया गया है। उसने कहा कि जैसा कि लक्ष्य तय किया गया था, जीएसटी को 1 अप्रैल 2010 से शुरू करना मुमकिन नहीं है, लेकिन नया टैक्स केंदीय स्तर से शुरू किया जा सकता है। परिषद ने दलील दी कि ऐसा करने के लिए सभी सेवाओं को कर के दायरे में लाया जाना चाहिए और सेनवैट तथा सेवा कर के लिए एक एकीकृत सीमा और दर ढांचा होना चाहिए।
- वर्ष 2009 के अप्रैल-दिसंबर अवधि में आयात 23.6 परसेंट घटा
- वर्ष 2009 के अप्रैल-दिसंबर अवधि में निर्यात20.3 परसेंट घटा
- वित्त वर्ष 2009-10 में सकल राजस्व घाटा 6.5 परसेंट रहेगा
- गरीबों का मासिक राशन कार्ड दिये जाने की सिफारिश जिसका देश में कहीं भी इस्तेमाल किया जा सके
- फूड कूपन के जरिये प्रत्यक्ष रूप से खाद्यान सब्सिडी दिये जाने पर विचार किया जाए
- कारोबारी साल 2009-10 में कृषि और संबंद्ध क्षेत्र का उत्पादन 0.2 परसेंट घटा
- सर्वे में सरकारी खर्चों में कमी पर ज़ोर, राजकोषीय स्थिति मजबूत बनाने की सलाह
- टेलिकॉम सेक्टर के लिए टैक्स स्ट्रक्चर को दुरुस्त किया जाए
- मार्केट में सरकार का दखल घटाए जाए
- फर्टिलाइजर की कीमतें डीकंट्रोल हों यानी उन पर से सरकारी नियंत्रण खत्म हो
- दूसरी तिमाही में 5 लाख लोगों को मिली नौकरी: इकनॉमिक सर्वे[ 1510hrs ]
- कृषि क्षेत्र की खराब हालत चिंता का विषय
- फूड, फर्टिलाइजर, डीजल और केरोसीन की कीमतें फ्री हों: ईको सर्वे[ 1251hrs ]
- धीरे-धीरे खत्म हो स्टिमुलस: इकनॉमिक सर्वे[ 1231hrs ]
- कुछ और महीनों तक महंगे होंगे खाने के सामान: इकनॉमिक सर्वे[ 1216hrs ]
- सेविंग्स का इस्तेमाल इन्फ्रा सेक्टर के विकास के लिए किया जाना चाहिए
- इकनॉमिक सर्वे '10:फ्यूल की मौजूदा कीमतें वाजिब नहीं
- सर्वे में एक्साइज ड्यूटी में कटौती किए जाने की बात
- टेक्सटाइल एक्सपोर्ट में गिरावट का रुख जारी रहेगा
- कारोबारी साल 2011-12 में 9% सर्विस सेक्टर की विकास दर 9%रहेगी
- अगले 4 साल में भारत सबसे तेजी से विकास कर रही इकॉनमी में होगा
- इन्फ्रास्ट्रक्चर सेक्टर को बढ़ावा दिए जाने की वकालत
- पेंशन रिफॉर्म को टॉप प्रॉयोरिटी पर रखे जाने की बात पर भी सर्वे में जोर
- मर्केंडाइज के लिए इंपोर्ट टैक्स घटाए जाने की बात भी सर्वे में
- इकनॉमिक सर्वे '10: पब्लिक सेक्टर के बैंकों का क्रेडिट ग्रोथ काफी ज्यादा
- हेल्थकेयर सेक्टर में FDI नियमों को आसान बनाने की हिमायत
- इकनॉमिक सर्वे: बढ़ती महंगाई पर चिंता, इसे दूर करने पर होगा विचार
- इकनॉमिक सर्वे 2009-10: स्टिमुलस पैकेज को धीरे-धीरे खत्म किया जाए
- कारोबारी साल 11-12 में 9% विकास दर की उम्मीद
- कारोबारी साल 2010-11 में विकास दर 8.25% से 8.75% रहने की उम्मीद
- इकनॉमिक सर्वे 2009-10: डबल डिजिट ग्रोथ 4 साल में हासिल किए जाने का अनुमान
- वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने कारोबारी साल 2009-10 के लिए इकनॉमिक सर्वे संसद में पेश कर दिया
सर्वे के मुताबिक, कारोबारी साल 2010-11 में देश के जीडीपी की विकास दर 8.25% से 8.75% के बीच रहने की उम्मीद है। इसके अगले कारोबारी साल यानी कारोबारी साल 2011-12 में विकास दर 9% से ऊपर रहने की उम्मीद है। कारोबारी साल 2011-12 में 9 परसेंट सर्विस सेक्टर की विकास दर 9 परसेंट रहने की बात की गई है।
सर्वे में स्टिमुलस पैकेज को धीरे-धीरे खत्म किए जाने की वकालत की गई है। इसमें बढ़ती महंगाई दर पर चिंता जताई गई है और बढ़ती महंगाई दर की वजह सप्लाई की गड़बड़ी को बताते हुए इसे दुर किए जाने की भी बात सर्वे में है। खाने के सामान के दाम में बढ़ोतरी को लेकर खासी चिंता सर्वे में है। हेल्थकेयर सेक्टर में एफडीआई नियमों को आसान बनाने की हिमायत की है।
सर्वे में एक्साइज ड्यूटी में कटौती किए जाने की बात तो की ही गई है, साथ ही कहा गया है कि फ्यूल की मौजूदा कीमतों वाजिब नहीं हैं। मार्केट में सरकार का दखल घटाए जाने और टेलिकॉम सेक्टर के लिए टैक्स स्ट्रक्चर को दुरुस्त किए जाने की हिमायत भी सर्वे में है।
सर्वे में कहा गया है कि पब्लिक सेक्टर के बैंकों का क्रेडिट ग्रोथ काफी ज्यादा है। मर्केंडाइज के लिए इंपोर्ट टैक्स घटाए जाने की बात भी सर्वे में है। इन्फ्रास्ट्रक्चर सेक्टर को बढ़ावा दिए जाने की वकालत करते हुए सर्वे में कहा गया है कि इस सेक्टर के विकास की राह में आने वाली बाधाओं को फौरन दूर किया जाना चाहिए। सेविंग्स का इस्तेमाल इन्फ्रा सेक्टर के विकास के लिए किया जाना चाहिए।
पेंशन रिफॉर्म को टॉप प्रॉयोरिटी पर रखे जाने की बात भी सर्वे में जोर देकर कही गई है। सर्वे के मुताबिक, टेक्सटाइल एक्सपोर्ट में गिरावट का रुख जारी रहेगा। शिपिंग सेक्टर के लिए टैक्स नियमों को आसान बनाने की बात भी इसमें है।
सर्वे में कृषि क्षेत्र की खराब हालत पर चिंता जताई गई है। फर्टिलाइजर की कीमतों को डीकंट्रोल किए जाने यानी उस पर से सरकारी नियंत्रण खत्म किए जाने की बात भी इसमें है।
आइए डालते हैं इकनॉमिक सर्वे 2009-10 के खास पहलुओं पर नजर:
फूड और फ्यूल की कीमतें फ्री हों
इकनॉमिक सर्वे में सरकार से गुजारिश की गई है कि वह फूड, फर्टिलाइजर, डीजल और केरोसीन की कीमतों से अपना नियंत्रण खत्म कर दे। यानी इन चीजों की कीमतों से सरकारी दखल खत्म कर दिया जाए और इनकी कीमतें बाजार पर छोड़ दी जाएं और बाजार इनकी कीमत खुद तय करे। फिलहाल सरकार इन चीजों पर सब्सिडी देती है। सर्वे में सब्सिडी के असर को लेकर सवाल खड़े किए गए हैं।
सर्वे में कहा गया है कि यदि सरकार इन चीजों की कीमतों से अपना नियंत्रण हटा लेती है तो इसके जरिये उसे इकॉनमी की बड़ी गतिविधियों के लिए धन आएगा और गरीबी खत्म किए जाने में मदद मिलेगी। सर्वे के मुताबिक, बड़े पैमाने पर दी जा रही सब्सिडी की वजह से सरकार पर वित्तीय बोझ लगातार बढ़ता जा रहा है और इससे इकॉनमी के विकास के लिए जरूरी काम नहीं हो पा रहे।
धीरे-धीरे खत्म हो स्टिमुलस
इकनॉमिक सर्वे में कहा गया है कि देश की इकॉनमी एक बार फिर से 9 परसेंट की विकास दर की ओर लौट रही है और ऐसी स्थिति में सरकार को स्टिमुलस पैकेज को धीरे-धीरे खत्म कर देना चाहिए। गौरतलब है कि पिछले साल ग्लोबल मंदी के असर से बचने के लिए और देश की इकॉनमी को सहारा देने के लिए सरकार ने कई सेक्टर्स को स्टिमुलस पैकेज दिया था।
सर्वे में कहा गया है कि यदि सरकार स्टिमुलस पैकेज को वापस लेती है तो इससे उसे देश के राजकोषीय घाटे को कम करने में मदद मिलेगी। चालू कारोबारी साल (2009-10) में राजकोषीय घाटे के जीडीपी के 6.8 रहने का अनुमान है। सर्वे में कहा गया है - 'देश की इकॉनमी को ग्लोबल क्राइसिस की जद से बचाने के लिए सरकार की ओर से उठाए गए कदमों का काफी पॉजिटिव असर देखने को मिला है। पर अब अच्छीखासी रिकवरी को देखते हुए उन स्टिमुलस पैकेज को धीरे-धीरे खत्म किए जाने का वक्त है, जो सरकार ने पिछले 15 से 18 महीनों के दौरान दिए हैं।'
अभी महंगे होंगे खाने के सामान
इकनॉमिक सर्वे में आशंका जाहिर की गई है कि आने वाले कुछ महीनों में खाने के सामान की कीमतें बढ़ेंगी। कमजोर फूड मैनेजमेंट पॉलिसी को डबल डिजिट फूड इन्फ्लेशन के लिए जिम्मेदार बताया गया है।
संसद में पेश इकनॉमिक सर्वे में कहा गया है - 'पिछले साल दिसंबर से खाने के सामान के दामों में तेज बढ़ोतरी के संकेत दिखने शुरू हुए और इसके कुछ और महीनों तक जारी रहने की आशंका है।'
सर्वे के मुताबिक, चीनी की कीमतों में हालिया बढ़ोतरी इंपोर्टेड रॉ शुगर की मार्केट में रीलीज न किए जाने की वजह से आई है। हालांकि सर्वे में उम्मीद जताई गई है कि सरकारी की ओर से अपनाई गई नीतियों की वजह से खाने के सामान के दाम में गिरावट और स्थिरता देखने को मिलेगी।
दूसरी तिमाही में 5 लाख लोगों को मिली नौकरी
सर्वे के मुताबिक, चालू कारोबारी साल की दूसरी तिमाही में भारत के जॉब मार्केट में अच्छीखासी रिकवरी देखने को मिली और इस दौरान करीब 5 लाख लोगों को नौकरी मिली, जबकि पिछले साल अप्रैल से जून के बीच करीब 1 लाख 31 हजार लोगों की नौकरी गई थी।
इकनॉमिक सर्वे में नौकरी से जुड़े ये आंकड़ें 11 राज्यों में टेक्सटाइल, लेदर, मेटल, ऑटोमोबाइल, जेम एंड जूलरी, ट्रांसपोर्ट, आईटी, बीपीओ और हेंडलूम एंड पावरलूम सेक्टर्स की 2873 यूनिटों से जुटाई गई जानकारियों के आधार पर तैयार किए गए हैं।
वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने लोकसभा में सर्वे पेश करते हुए कहा कि लेदर को छोड़कर बाकी 7 सेक्टरों में नौकरी संख्या में जुलाई-सितंबर तिमाही में बढ़ोतरी दर्ज की गई है। मुखर्जी ने कहा कि दूसरी तिमाही में जिन लोगों को नौकरी मिली उनमें से 80 परसेंट को पे-रोल पर नौकरी मिली है।
लोकसभा में दिन भर चली बहस का जवाब देते हुए कृषि एवं खाद्य मंत्री पवार ने माना कि महंगाई से जनता पर असर पड़ रहा है। उन्होंने सदन को विश्वास दिलाया कि सरकार महंगाई रोकने के हरसंभव उपाय कर रही है। पवार के जवाब से असंतुष्ट विपक्ष ने वॉकआउट कर दिया। बीजेपी और लेफ्ट के अलावा एसपी, आरजेडी और बीएसपी जैसे सरकार को बाहर से समर्थन दे रहे दल भी वॉकआउट कर गए। चर्चा के दौरान विपक्ष के निशाने पर रहे पवार ने कहा कि सरकार ने कोई कसर नहीं छोड़ी है। चाहे उपभोक्ता कानून में सुधार कर राज्यों को ज्यादा अधिकार देने की बात हो या खाद्यान्न आवंटित करने का मामला हो, सरकार ने सभी कदम उठाए हैं। विपक्ष की मांग पर मुख्यमंत्रियों की बैठक भी बुलाई है।
उधर, विपक्ष ने सरकार पर घोटाला दर घोटाला करके महंगाई बढ़ाने का आरोप लगाते हुए सारे मामले पर श्वेत पत्र लाने की मांग की। सरकार को समर्थन देने का दावा करने वाले एसपी, बीएसपी और आरजेडी ने महंगाई पर सरकार को खूब खरी-खोटी सुनाई।
लोकसभा में चर्चा की शुरुआत विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने की। सुषमा ने आरोप लगाया कि महंगाई बढ़ने का कारण गेहूं, चावल, दालों और चीनी के आयात-निर्यात घोटाले हैं। उन्होंने घोटालों की जांच के लिए संयुक्त संसदीय समिति बनाने की मांग की। सुषमा ने सोनिया गांधी से कहा कि गठबंधन की नेता होने के कारण सरकार चलाने की जिम्मेदारी उनकी (सोनिया की) है, वह प्रधानमंत्री को महंगाई पर नियंत्रण के लिए सही कदम उठाने के निर्देश दें। सुषमा जब सरकार पर तीखे वार कर रहीं थी, तब सदन में बैठे पवार मुस्कुरा रहे थे। इस पर आक्रोशित सुषमा ने कहा- वह (पवार) मुस्कुरा रहे हैं। उनकी मुस्कराहट मत देखिए। सरकार की गलत नीतियों का फल भुगत रहे गरीबों की आंखों में आंसू देखिए।
कांग्रेस के संजय निरुपम ने जवाब देते हुए कहा कि सट्टा बाजार एनडीए ने शुरू किया था। महंगाई के लिए राज्य सरकारों को जिम्मेदार ठहराते हुए उन्होंने कहा कि जमाखोरों और कालाबाजारियों के खिलाफ कार्रवाई करना राज्यों का काम है। संजय की शिवसेना सदस्यों के साथ झड़पें भी हुईं।
मुखर्जी ने कहा कि थोक मंडियों से रिटेल में आते-आते फलों और सब्जियों के दाम दोगुने हो जाते हैं। दूसरी तरफ किसान को बढ़ी हुई कीमतों का लाभ नहीं मिल पाता। मुखर्जी ने माना कि कृषि क्षेत्र में बड़े पैमाने पर निवेश नहीं किया गया है। उन्होंने कहा कि खाद्य सुरक्षा कानून हमारा वादा है, उसे लाया जाएगा। खाद्य सुरक्षा के लिए मध्यम अवधि के और दीर्घकालिक उपायों वाली रणनीति बनाना होगी।
मुलायम और लालू यादव ने मिलकर यूपीए पर हमला बोला। आरजेडी चीफ ने कहा कि यूपीए का अहंकार उसे गर्त में ले जाएगा। आप अभिमानी हैं, आउट ऑफ कंट्रोल हैं। मुलायम ने कहा कि आजादी के बाद इतनी महंगाई कभी नहीं बढ़ी। उन्होंने सरकार पर पूंजीपतियों से सांठगांठ का आरोप लगाया।
अब सिंगूर में लगेगी रेलकोच फैक्ट्री |
संसद में 2010-11 का रेल बजट पेश करते हुए ममता ने कहा कि मंत्रालय को पश्चिम बंगाल सरकार से सिंगूर में रेलकोच फैक्ट्री लगाने का आग्रह मिला था। उन्होंने कहा कि रेल मंत्रालय ने राज्य सरकार को अपनी मंशा से अवगत करा दिया है। राज्य सरकार को विवादास्पद स्थल की 997.11 एकड़ भूमि में से करीब 400 एकड़ भूमि उन किसानों को लौटानी होगी जिन्होंने भूमि अधिग्रहण का विरोध किया था।
निजी क्षेत्र के टाटा ग्रुप ने सिंगूर जिले में अपनी बहुचर्चित लखटकिया कार नैनो के निर्माण के लिए 1500 करोड़ रुपये का कारखाना लगाने का प्रस्ताव किया था। राज्य सरकार ने इसके लिए भूमि भी अधिग्रहीत कर ली थी। लेकिन किसानों के भारी विरोध के चलते टाटा को अपना प्लांट यहां से हटाकर गुजरात ले जाना पड़ा। राज्य सरकार ने अब इसी स्थान पर रेल के डिब्बे बनाने का कारखाना लगाने का रेल मंत्री से आग्रह किया है, जिसे उन्होंने मान लिया है और कहा है कि अनिच्छुक किसानों की भूमि राज्य सरकार को लौटानी होगी।
इकनॉमिक सर्वे में नौकरी से जुड़े ये आंकड़ें 11 राज्यों में टेक्सटाइल, लेदर, मेटल, ऑटोमोबाइल, जेम एंड जूलरी, ट्रांसपोर्ट, आईटी, बीपीओ और हेंडलूम एंड पावरलूम सेक्टर्स की 2873 यूनिटों से जुटाई गई जानकारियों के आधार पर तैयार किए गए हैं।
वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने लोकसभा में सर्वे पेश करते हुए कहा कि लेदर को छोड़कर बाकी 7 सेक्टरों में नौकरी संख्या में जुलाई-सितंबर तिमाही में बढ़ोतरी दर्ज की गई है। मुखर्जी ने कहा कि दूसरी तिमाही में जिन लोगों को नौकरी मिली उनमें से 80 परसेंट को पे-रोल पर नौकरी मिली है।
25 Feb 2010, 1435 hrs IST, भाषा
समीक्षाधीन सप्ताह में दालों की कीमतों में एक प्रतिशत की कमी आई वहीं सब्जियां 5.7 फीसद तक सस्ती हुई।
सालाना आधार पर समीक्षाधीन सप्ताह में आलू की कीमतों में 30.40 फीसद की वृद्धि दर्ज की गई, जो छह फरवरी को समाप्त सप्ताह में 57.67 फीसद थी। इसी प्रकार सालाना आधार पर प्याज की कीमतें 12.46 फीसद तक अधिक थीं। इससे पिछले सप्ताह साल दर साल आधार पर प्याज की कीमतें 29.92 फीसद अधिक थीं।
इसी प्रकार प्राथमिक वस्तु जिनमें कच्चे रूप में खाद्य और अखाद्य दोनों शामिल हैं, की मुद्रास्फीति की दर घटकर 15.84 फीसद पर आ गई, जो इससे पिछले सप्ताह 16.23 फीसद पर थी।
2010 में राहत पैकेज वापसी से इकॉनमी की रिकवरी को खतरा
12 Feb 2010, 1601 hrs IST, इकनॉमिक टाइम्स
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श्रीपति त्रिवेदी
डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली, 24 फरवरी- रेल बजट तो पेश हो गया और इसमें रेल मंत्री ममता बनर्जी ने जितनी परियोजनाओं के संकल्प पेश किए हैं उनमें से दो तिहाई के लिए ममता के भूतपूर्व गुरु और वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी एक पैसा नहीं देने वाले। इसीलिए 26 फरवरी को जब आम बजट पेश होगा तो ममता बनर्जी के तेवर देखने लायक होंगे।
प्रणब मुखर्जी बजट को अंतिम रूप दे चुके हैं और अब कुछ उलझनों को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ बैठ कर ठीक कर रहे हैं। उन्होंने पिछले वित्त मंत्री और वर्तमान गृहमंत्री पी चिदंबरम की सलाह भी ली है। ममता बनर्जी ने जो एक दर्जन रेल परियोजनाएं मांगी थी उनमें से दो मुलाकातो के बाद सिर्फ तीन मंजूर की गई है और इनमें से भी एक के लिए रेल मंत्रालय को अपनी जेब से पैसा खर्च करना होगा। वैसे प्रणब मुखर्जी का सारा जोर सरकारी खजाने यानी राजकोष यानी घाटे को कम करने पर है।
इन दिनों पूरे देश की निगाहें 26 फरवरी को वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी द्वारा प्रस्तुत किए जाने वाले वर्ष 2010-11 के बजट पर लगी हुई हैं। यह बजट इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसमें वित्तमंत्री विनिवेश, विदेशी निवेश, करारोपण और सब्सिडी जैसे कई महत्वपूर्ण नीतिगत संकेत देते हुए दिखाई देंगे। आर्थिक सुधारों को गतिशील बनाने का संकेत भी बजट से उभरेगा।
निश्चित रूप से इस समय बढ़ता हुआ राजकोषीय घाटा देश की अर्थव्यवस्था की सबसे बड़ी चुनौती है। यह पूरी संभावना है कि वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी नए बजट में अपना अधिकांश ध्यान राजकोषीय घाटा कम करने पर केंद्रित करते हुए दिखाई देंगे।
जिस तरह प्रधानमंत्री मनममोहन सिंह और गृहमंत्री पी चिदंबरम ने वित्तमंत्री रहते हुए राजकोषीय घाटे को नियंत्रित करने की पुरजोर कोशिश से एक सुधारवादी वित्तमंत्री की छवि बनाई है, बतौर वित्तमंत्री वैसी ही सुधारवादी छवि बनाने का पूरा मौका इस बार प्रणब मुखर्जी के पास है।
वैश्वित आर्थिक मंदी के चलते चालू वित्त वर्ष में सरकार का राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद [जीडीपी] का 6.8 फीसदी और राजस्व घाटा जीडीपी के मुकाबले पांच फीसदी तक बढ़ जाने का अनुमान है। करीब एक दशक तक एक अंक में रहने के बाद केंद्र और राज्य सरकारों का कुल घाटा अब बढ़कर दो अंकों में पहुंच चुका है। राजकोषीय घाटा किसी देश को कितनी कठिनाइयों में पहुंचा सकता है, इसका अनुमान यूनान के परेशान प्रधानमंत्री जार्ज पापेंद्र के बार-बार दिए जा रहे इस वक्तव्य से लगाया जा सकता है कि उनके देश यूनान में मतदाताओं को ललचाने और राजनीतिक संरक्षण में धन बर्बाद करने के कारण वित्तीय व्यवस्था ठप्प हो गई है और वित्तीय प्रणाली में कानून के शासन की स्थिति ही समाप्त हो गई।
इतना ही नहीं राहत की योजनाओं में भ्रष्टाचार के कारण सरकार दयनीय वित्तीय स्थिति में पहुंच गई है। स्थिति यह है कि संकट का सामना करने में असमर्थ होकर पूरा यूनान राजकोषीय घाटे से मुक्त होने के लिए ईश्वर से प्रार्थना कर रहा है।
विश्व बैंक द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट 'वैश्विक आर्थिक परिदृश्य' में कहा गया है कि भारत सहित अनेक दक्षिण एशियाई अर्थव्यवस्थाओं के लिए लगातार बढ़ता वित्तीय घाटा खतरे का रूप लेता जा रहा है।
इसमें कोई दो मत नहीं कि भ्रष्टाचार, कर चोरी, अनुचित सार्वजनिक खर्च को राजनीतिक संरक्षण और भारी सब्सिडी के प्रावधान के कारण देश का राजकोषीय घाटा लगातार बढ़ता जा रहा है। भारत में प्रमुख रूप से उर्वरक सब्सिडी का आकार लगभग 20,000 करोड़ रुपये तक पहुंच चुका है। तेल विपणन से जुड़ी सरकारी कंपनियों का घाटा करीब 30,000 करोड़ रुपये है। खाद्य सब्सिडी का आकार बढ़ता जा रहा है। संसद में दिसंबर 2009 में अनुदानों के लिए 25,725 करोड़ रुपये की पूरक मांग की गई है। राहत पैकेजों की वजह से कर संग्रह खासतौर से अप्रत्यक्ष करों के जरिए होने वाली सरकारी कमाई में कमी आ गई है।
अप्रैल 2009 से नवंबर 2009 के बीच अप्रत्यक्ष कर संग्रह 21 फीसदी घट गया है। पिछले वर्ष के बजट में थ्री-जी स्पेक्ट्रम की नीलामी के जरिए 35,000 करोड़ रुपये सरकारी खजाने में आने का प्रावधान था, लेकिन यह रकम अब तक सरकारी खजाने में जाती नहीं दिख रही है। सरकारी खर्च में भी काफी बढ़ोतरी देखने को मिली है।
ऐसी कई बजट सब्सिडी को खतरनाक स्तर तक बढ़ने दिया गया, जिनका कोई सामाजिक और आर्थिक प्रभाव नहीं दिख रहा है। बजट अनुमानों के मुकाबले बजट के संशोधित अनुमानों में वित्तीय घाटे में बढ़ोतरी प्रोत्साहन पैकेजके कारण ही नहीं हुई है, बल्कि यह विविध तरह की सब्सिडी, वेतन समीक्षा, कर्ज माफी, नरेगा के विस्तार के लिए वित्त पोषण आदि कारणों से चिंताजनक ऊंचाई पर पहुंची है।
ऐसे में जब राजकोषीय घाटा अनियंत्रित है और छलांगे लगाकर बढ़ रहा है, तब वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी दो दशक पहले के उस परिदृश्य को याद कर सकते हैं, जब मनमोहन सिंह ने 1991 में एक क्रांतिकारी बजट पेश किया था। यह बजट भयानक राजकोषीय घाटे, आसमान पर पहुंची महंगाई दर और विदेश व्यापार के मामले में दिवालिएपन की पृष्ठभूममि में प्रस्तुत किया गया था।
ऐसे ही परिप्रेक्ष्य में अब 2010-11 का बजट पेश करते समय वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी को भी अपनी भूमिका बेहद अहम बनाना होगी। वित्तमंत्री को बजट में इस महत्वपूर्ण पहलू पर ध्यान देना होगा कि अब राजकोषीय घाटे के मामले में उपयुक्त कदम उठाने और इनकी चरणबध्द वापसी का समय आ गया है।
निस्संदेह अगर वित्तमंत्री इस वर्ष राजकोषीय घाटे को कम करने की डगर पर बढ़ने का मौका खो देते हैं तो उन्हें दूसरा ऐसा अच्छा मौका नहीं मिलेगा। चूंकि इस वर्ष केवल बिहार विधानसभा के चुनाव होने हैं और अन्य कई राज्यों में वर्ष 2011 में चुनाव होंगे, लिहाजा वित्तीय सुधार के परिप्रेक्ष्य में सख्त कदम उठाने के लिए वित्तमंत्री के पास इसी बजट में सबसे अच्छा मौका है। अब वित्तमंत्री को उनके द्वारा बार-बार दिए गए इस वक्तव्य पर दृढ़तापूर्वक कायम रहना होगा कि वर्ष 2010-11 में वह राजकोषीय घाटे को राष्ट्रीय आय के अनुपात के 5.5 फीसदी और राजस्व घाटे को जीडीपी के कम से कम 2.0 फीसदी नीचे ले जाएंगे।
निश्चित रूप से चालू वित्त वर्ष के दौरान लगभग साढ़े चार लाख करोड़ रुपये की उधारी के बाद वित्त मंत्रालय अपनी झोली भरने के लिए भरपूर प्रयास करते हुए दिखाई देगा। उद्योग-व्यापार के लिए बजट से राहत की उम्मीदें कम हैं। नौकरीपेशा वर्ग, वरिष्ठ नागारिक महिलाओं, छोटे उद्यमी आदि को बजट से कुछ राहत अपेक्षित है।
देश की अर्थव्यवस्था के नए आंकड़ों के आधार पर देखा जाए तो देश में सेवा क्षेत्र, निर्यात व्यापार और औद्योगिक उत्पादन क्षेत्र में स्थितियां सुधर गई हैं। केंद्रीय सांख्यिकी संगठन [सीएसओ] द्वारा जारी किए गए नवीनतम अग्रिम अनुमानों के मुताबिक वर्ष 2009-10 में अर्थव्यवस्था 7।2 फीसदी की रफ्तार से बढ़ेगी।
अर्थव्यवस्था की बढ़ती रफ्तार के ऐसे परिवेश में वित्तमंत्री को वर्ष 2008-09 में दिए गए वित्तीय राहत पैकेज के कुछ भाग को वापस लेना जरूरी होगा। चूंकि गुड एंड सर्विस टैक्स यानी जीएसटी को लागू करना करीब एक साल के लिए आगे बढ़ गया है, अत: इस वर्ष उत्पाद कर में दो फीसदी की बढ़ोतरी हो सकती है। राजकोषीय घाटे को कम करने के लिए सरकार के पास कर राजस्व बढ़ाने और सार्वजनिक क्षेत्र की हिस्सेदारी बेचने के अच्छे रास्ते मौजूद हैं।
वित्त मंत्रालय सूत्रों के अनुसार बिजली क्षेत्र के उपक्रम एनटीपीसी, रुरल इलेक्ट्रिफिकेशन कारपोरेशन, सतलज जल विद्युत निगम और राष्ट्रीय खनिज विकास निगम [एनएमडीसी] जैसे सार्वजनिक उपक्रमों में सरकारी आंशिक इक्विटी विनिवेश से सरकार को करीब 50,000 करोड़ रुपये की राशि मिलने की उम्मीद है। नए बजट में सर्विस टैक्स बढ़ाया जा सकता है। इसे बढ़ाकर एक वर्ष पूर्व के स्तर पर लाया जा सकता है।
यूरिया को छोड़ सभी उर्वरकों की सब्सिडी कम हो सकती है। शेयर बाजार के लिए बजट में उपहारों का ढेर नहीं होगा। यहां यह बढ़ते राजकोषीय घाटे के मद्देनजर संसद की वित्त संबंधी स्थाई समिति ने बार-बार अपने प्रतिवेदन में सरकार को सलाह दी है कि उसे बार-बार सब्सिडी और कर छूट देने से बचना चाहिए। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष [आईएमएफ] ने भी अपनी रिपोर्ट में बताया है कि भारत और अधिक तेजी से विकास कर सकता है, लेकिन उसका राजकोषीय घाटा तर्कसंगत नहीं है। आईएमएफ ने भारत को सलाह दी है कि वह राजकोषीय घाटे पर अंकुश लगाए।
उसका कहना है कि इस समय भारत के लिए सुनहरा मौका है कि वह आर्थिक सुधारों को लागू करे और महसूस करे कि उसकी अर्थव्यवस्था में अकूत संभावनाएं हैं। हम आशा कर सकते हैं कि नए बजट में एक ओर वित्तमंत्री आम आदमी को राहत देने के प्रयास करते हुए दिखाई देंगे। वहीं दूसरी ओर प्रोत्साहन पैकेजों की वापसी की शुरुआत और अर्थव्यवस्था के लिए बोझ बन रही अनावश्यक रियायतों को नियंत्रित करके राजस्व और राजकोषीय घाटे में कमी करने के पुरजोर प्रयासों से अर्थव्यवस्था की तस्वीर को सुहावनी बनाने की डगर पर आगे बढ़ते हुए दिखाई देंगे।
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इसके लिए अनुवादित अंग्रेज़ी परिणाम देखें:
2009-10 की आर्थिक समीक्षा (The Economic Survey 2009-10)
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चीन को चार साल में पछाड़ सकता है भारत
आर्थिक समीक्षा : महंगाई, पर विकास के रास्ते पर सरपट दौड़ेगी अर्थव्यवस्था (राउंडअप)
आर्थिक सुधारों में नेतृत्व कर सकता है भारत
उद्योग जगत की तस्वीर चमकीली : आर्थिक समीक्षा
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दलहन की कमी पर चिंता
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खाद्यान्न, उर्वरक, डीजल के दाम नियंत्रण मुक्त हों
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प्रणब दा का आर्थिक सर्वेः जारी रहेगी महंगाई
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