राजनीति ने हाल बेहाल किया पोर्ट ट्रस्ट का!
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
अब जाकर कहीं कोलकाता पोर्टट्रस्ट के चेयरमैन एरपी कहलों ने माना है कि एबीजी के हल्दिया बंदरगाह छोड़ने पर पर ट्रस्ट घाटे में है। वे राजनीतिक वजह का खुलासा नहीं कर रहे हैं जो सर्वविदित है।जंगी मजदूर आंदोलन के कारण ही हल्दिया से एबीजी की विदाई हो गयी।मजदूर यूनियनें मशीनों के जरिये जहाजों से माल उतारने के लिए ठोका कंपनी के खिलाफ लामबंद हो गयी थीं। अब फिर एबीजी के छोड़े हुए दो नंबर और आठ नंबर बर्थ के लिए नये सिरे से निविदा जारी करने की जानकारी दी कहलों ने।नई कंपनी फिर मशीनों का इस्तेमाल करेगी,तो इसका यूनियनें विरोध नहीं करेंगी ,ऐसी गारंटी हालांकि किसीने नहीं दी है।
वैसे भी हुगली नदी की तलहटी में गाद भरते जाने से कोलकाता और हल्दिया,दोनों बंदरगाह विपन्न है। इस दीर्घकालीन समस्या का एकमात्र हल है कु हुगली में अबाध जलप्रवाह हो पर्याप्त,जो फिलहाल फरक्का से छोड़े गये जल की मात्र पर निर्भर है। उद्योगों का जो मलबा हुगली में भर रहा है,उसके समाधान के उपाय भी तुरंत नहीं हो सकते। लेकिन रोजमर्रे के कामकाज में सुधार के जरिये बचाव के जो रास्ते बन सकते हैं, वे राजनीतिक वर्चस्व वाले जंगी आंदोलन की वजह से खुलने असंभव है।चालू बंदरगाहों का यह हाल और दीदी ने सागरद्वीप में बंदर बनाने का ऐलान कर दिया।बंदरगाह प्रबंधन सुधारे बिना सागरद्वीप बंदरगाह दस बीस साल में बन भी जाये, तो बंगाल के औद्योगिक परिदृश्य कितने सुधरेंगे ,इस पर सिर्फ कयास लगाये जा सकते हैं।
बहरहाल ताजा खबर तो यही है कि सत्ता समर्थित युनियनों की रंगबाजी से एबीजी को बाहर का रास्त दिखा दि्ये जाने के कारण हल्दिया बंदरगाह को हर महीने पंद्रह करोड़ का घाटा हो रहा है।बंदरगाह घाटे में हों ,अब निरुपाय पोर्ट ट्रस्ट चेयरमैन भी मानने लगे हैं। उनकी आधिकारिक स्वाकारोक्ति है कि जहाजों से माल उतारने वाली एबीजी संसस्था के हल्दिया बंदरगाह से निकलने के बाद बंदरगाह की आय में कमी हो गयी है।
मालूम हो कि हल्दिया बंदरगाह के दो और आठ नंबर बर्थ पर 2010 में एबीजी ने काम शुरु किया था। अत्याधुनिक सचल क्रेन के जरिये रोज यह संस्था दोनों बर्थ पर चालीस हजार मीटरी टन माल जहाजों से उतार रही थी।किंतु श्रमिक आंदोलन और अधिकारियों के अपहरण की वजह से एबीजी को हल्दिया छोड़कर जाना ही पड़ा।हल्दिया बंदरगाह पर अत्याधुनिक सचल क्रेन के जरिये माल उतारने का काम करने वाली हल्दिया बल्क टर्मिनल्स (एचबीटी) ने हल्दिया बंदरगाह पर असुरक्षित काम के माहौल की वजह से तत्काल हटने का एलान किया। दूसरी ओर राज्य की दो प्रमुख विरोधी राजनीतिक पार्टियों माकपा व कांग्रेस ने हल्दिया बंदरगाह पर जारी संकट को गंभीर व जटिल करार दिया।
कोलकाता पोर्ट ट्रस्ट की हल्दिया गोदी परिसर में उस समय संकट खड़ा हो गया जब एचबीटी ने इसी महीने अपने 275 कर्मचारियों को 'फालतू' बताते हुए बर्खास्त कर दिया। एचबीटी के मुख्य कार्यपालक अधिकारी गुरदीप माल्ही ने एक बयान में कहा-गहरी निराशा के बीच हमें आपको बताना पड़ रहा है कि हमारे पास हल्दिया बंदरगाह को छोड़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। हल्दिया में खराब होती स्थिति के बीच हम धोखा खाया महसूस कर रहे हैं। हमें उम्मीद है कि जो लोग इसके लिए जिम्मेदार हैं उनके खिलाफ कार्रवाई होगी।
एचबीटी पर सितंबर से काम ठप हो गया। एचबीटी के बर्खास्त कर्मचारी और ट्रेड यूनियनों के श्रमिक परिसर के भीतर और बाहर आंदोलन करते रहों। इससे पहले एचबीटी ने आरोप लगाया था कि उसके प्रबंधन के तीन अधिकारियों और उनके परिवार के दो सदस्यों का अपहरण कर लिया गया । पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने महालांकि वायदा किया था कि हल्दिया में पूरी पुलिस सुरक्षा मुहैया कराई जाएगी।
उसके बाद से माल उतारने के लिए निविदा जारी करने पर दावा करने वाली कंपनियां बोली इतनी ऊंची लगा रही है कि पोर्ट ट्रस्ट के लिए छेका देना असंभव हो रहा है। नयी संस्थाएं यूनियनों और नेताओं की पूजा पाठ काख्रच लगाकर ही बोली लगा रही हैं।उधर पोर्ट ट्रस्ट का कामकाज बाधित रहने से घाटा में लगातार इजाफा हो रहा है।
तृणमूल कांग्रेस नेता व सांसद शुभेंदु अधिकारी का कहना है कि हल्दिया बंदरगाह देश का एक बड़ा बंदरगाह है। इसे स्वायत्त बनाने की आवश्यकता है। हल्दिया बंदरगाह में गहराई को लेकर आज जो समस्या हो रही है, उसके लिए पूरी तरह से पूर्व प्रधानमंत्री देवगौड़ा और पूर्व मुख्यमंत्री स्व. ज्योति बसु जिम्मेवार हैं। उन्होंने बांग्लादेश के साथ जल समझौता किया, जिसके चलते यह स्थिति उत्पन्न हुई। इस वजह से नदी में पानी का दबाव काफी कम हो गया है। जिसके चलते कई बड़े जहाज बंदरगाह में नहीं रुक पाते। कई जहाजों को वापस लौट जाना पड़ता है।
उनका यह वक्तव्य सही भी है क्योंकि हल्दिया और कोलकाता बंदरगाहों को पर्याप्त मात्रा में पानी फरक्का से नहीं मिल रहा है। वैसे दीदी ने सागरद्वीप में नये बंदरगाह का ऐलान किया हुआ है। इसके लिए सागरद्वीप को सड़कपथ पर जोड़ना जरुरी है और बूढ़ी गंगा पर पुल बने बिना इस बंदरगाह पर काम शुरु हो ही नहीं सकता। दीदी के इस हवाई किले के लिए केंद्र से अभी कोई बजट मंजूर नहीं हुआ है। बिना केंद्रीय मदद के नया बंदरगाह कैसे बानायेंगी दीदी, यह तो दीदी ही जानें। पर फिलवक्त तो कोलकाता और हल्दिया बंदरगाहों को बचाने के लिए केंद्र की मदद चाहिए!समुद्र में बढ़ रहे गाद के जमाव के कारण संकरे होते समुद्री मार्ग ने देश के पूर्वी और पूर्वोत्तर हिस्से के प्रमुख व्यापारिक जलमार्ग वाले हल्दिया बंदरगाह के भविष्य पर प्रश्नचिह्न् लगा दिया है।बंदरगाह में परिवहन मार्ग लगातार सिकुड़ता जा रहा है और बड़े जलयानों को यहां से गुजरने से पहले आधा से अधिक माल नजदीकी बंदरगाहों जैसे पारादीप अथवा विशाखापतनम में उतारना पड़ता है ताकि जहाज का भार कम किया जा सके।
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