उत्तराखंड की जनता हमेषा बदरी-केदार के नाम पर छली गयी है । उसे बताया गया है कि तुम देवभूमि के रहने वाले हो । सीधे -साधे, ईमानदार । आप लोगों पर प्रभु की कृपा है । बोलान्दा बदरी के नाम से राजा ने सदियों तक राज किया । इसी बोलने वाले बदरी ने अपने लिये अलग टिहरी बना दिया । शोषण का एक टापू । वही बोलान्दा बदरी खोलता है आपके चार धामों के किवाड । वही बोलान्दा बदरी जिसने 1930 में तिलाड़ी में भून दिया था अपनी जनता को । उस जनता को जो अपना हक मांग रही थी । जब टिहरी बांध बना तो यह जिन्दा बदरी भाग गया था । एक संस्कृति की बलि देकर रास्ता खोला पहाड़ को तबाह करने का । यह जिन्दा बदरी लगातार जीतता रहा टिहरी से । भगवान के आगे किसकी चलती है । जनता की भी नहीं चली । अब भी जिन्दा बदरी के वंषजों का राज है ।
वास्तव में आज जिन्दा और मरे दोनों बदरी को हम लोग खोज रहे हैं । गुजरात, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान देश के सब हिस्सों से आ रहे हैं सरकारों के प्रतिनिधी अपनी-अपनी जनता को ढूढने के लिये । ठीक भी है इन राज्यों के पास भगवान नहीं हैं । वहां की व्यवस्था आदमी देखता है । हमारे उत्तरा- खण्ड के कण-कण में भगवान का वास है इसलिये अभी दबे गांवों को देखने की जरूरत नहीं है ? देहरादून की सरकार जिनको बचा सकती है बचा ले । बांकी दूर दराज के गांवों का तो बदरी-केदार ही मालिक हैं । उसी की कृपा पर तो सदियों से यहाँ के लोग जी रहे हैं ।
अगर चारधाम यात्रा का समय नहीं होता तो सबसे पहुचने वाला मीडीया भी वहाँ नहीं होता और न ही वहाँ के समाचार माल बनते । पिछले तीन वर्षों में भी तो आपदा आयी थी, ज्यादा नुकसान थोड़ी हुआ था । सिपर्फ एक छोटी सी घटना हुयी थी बागेश्वर के सुमगढ़ में 18 बच्चे ही तो मरे थे । 3800 गांवों में भूस्खलन हुआ था । उत्तरकाशी और रुद्रप्रयाग और अलमोड़ा में कुल दो-तीन सौ लोग मरे थे । गांवों की तबाही तो हर साल ही होती है । आज तक तो बदरी-केदार के भरोसे थे, इस बार केदारनाथ भी नहीं रहे । अब तो एक ही आश है जल्दी ही देहरादून में बैठने वाले भगवानों से भी छुटकार मिले तो कुछ बात बने...
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