स्पेन में गहराता आर्थिक संकट आम लोगों को आत्महत्या की ओर धकेल रहा है
बढ़ती बेरोज़गारी, ग़रीबी और कर्ज़ के बोझ ने हज़ारों को ख़ुदकुशी पर मजबूर किया
गुरप्रीत
बीते नवम्बर महीने में स्पेन के बुज़ार्सोते शहर में एक 54 साल के पिता ने अपनी बेटी को चूमा और छत से छलांग लगा दी, 53 साल के अमाइया ईगन ने बिलबाओ में अपने घर की चौथी मंज़िल से छलांग लगा दी। इन दोनों को बैंक की तरफ से घर ज़ब्त किये जाने के कारण घर खाली करने का नोटिस मिला था। इसी तरह से एक युवा ने ग्रेन क्नारिया में एक पुल से छलांग लगा दी, उसको नौकरी छोड़ने और घर खाली करने का नोटिस मिला था। दूसरी तरफ लाखों की संख्या में लोग सड़कों पर उतर रहे हैं, उनके हाथों में जो बैनर हैं उन पर लिखा हैः “ये आत्महत्याएँ नहीं, घिनौने कत्ल हैं”, “उन्हें पैसा मिल रहा है हमें मौत”, और “हमें इस आर्थिक आतंकवाद को खत्म करना ही होगा।” ग़ौरतलब है कि स्पेन में अब तक आत्महत्या की ऐसी 3158 घटनाएँ सामने आ चुकी हैं। विश्वस्तर पर चल रहे वित्तीय संकट के कारण स्पेन की हालत नाजुक हो चुकी है। बड़े पैमाने पर बेरोज़गारी फैली हुई है, कर्ज़ में दिन-ब-दिन बढ़ोत्तरी हो रही है, लोगों को बेघर किया जा रहा है और लोग सड़कों पर सोने के लिए मजबूर हैं तथा दो वक़्त की रोटी के भी लाले पड़ गये हैं। इन दिक़्क़तों से परेशान लोग आत्महत्या कर रहे हैं।
स्पेन का मौजूदा संकट पूँजीवाद का ढांचागत संकट ही है जो उत्पादन के सामाजिक चरित्र और उत्पादन के साधनों के निजी मालिकाने के अन्तरविरोध से पैदा होता है तथा अलग-अलग रूपों में सामने आता है। पूँजीवाद के अन्तर्गत अर्थव्यवस्था तेज़ी और मन्दी के दौरों से गुज़रते हुए संकटों में बार-बार फँसती रहती है। 2008 तक स्पेन अच्छी विकास दर से आगे बढा, लेकिन जैसा कि पूँजीवाद में होना ही था, आर्थिक तेज़ी के बाद संकट ने दस्तक दी। ज़्यादा उत्पादन के कारण बाज़ार चीजों से भर गये लेकिन बिक्री सीमित थी, नतीजतन बड़े पैमाने पर अर्थव्यवस्था को सहारा देने के लिए निर्माणक्षेत्र में पूँजी लगाने की योजना बनयी गयी, लोगों को घरों के लिए कम दरों पर लम्बी मियाद (40 वर्ष) के लिए कर्ज़ दिया जाने लगा ताकि लोग ख़रीदारी कर सकें और अर्थव्यवस्था में गति आये। इसके पीछे यह सोच थी कि घरों की कीमत लगातार बढ़ती रहती है, अगर लोग कर्ज़ वापस न कर पाये तो घर ज़ब्त कर लिए जायेंगे। उनकी तरफ से वापस की गयी दो-चार किश्तें और घरों की बढ़ी हुई कीमत बैंकों का मुनाफ़ा बन जायेगा। लेकिन घर ज़्यादा होने के कारण घरों की कीमतें बड़े पैमाने पर गिर गयीं और अर्थव्यवस्था को कोई लाभ न मिल सका और लोग कंगाल हो गये और इससे बैंकों के डूबने की नौबत आ गयी। बैंकों को बचाने के लिए सरकार ने इनको भारी बेल-आऊट पैकेज दिये, इसके लिए सरकार को विदेशों से भारी कर्ज़ लेना पड़ा और सरकार भी कर्ज़दार हो गई। इस तरह स्पेन का संकट और गहरा हो गया। स्पेन पर इसके घरेलू उत्पादन का करीब 85 फीसदी कर्ज़ है। इसकी विकास दर गिरकर 1.4 फीसदी पर आ गयी है। यहाँ बेरोज़गारी लगातार बढ़ रही है, ताज़ा आंकड़ों के मुताबिक यहाँ बेरोज़गारी की दर 29 फीसदी पर पहुँच गयी है। मतलब कि काम करने योग्य प्रत्येक चार आदमियों में से एक बेरोज़गार है। युवकों में बेरोज़गारी और भी भयंकर है, यह 50 फीसदी को पार कर गयी है। मतलब कि स्पेन के हर दो युवाओं में से एक युवा बेरोज़गार है। स्पेन की सरकार ने अपना बजट घाटा कम करने के लिए अपने खर्चों में कटौती शुरू कर दी है, मतलब कि आम जनता को जल, स्वास्थ्य, शिक्षा और पेंशन आदि सुविधाओं से अपने हाथ खींच लिए हैं। इससे जनता का जीवन कठिन तो हुआ है साथ ही उनमें और ज़्यादा आक्रोश और बेचौनी फैली है।
अब बैंक की तरफ से किश्तों का भुगतान न करने वालों के घर ज़ब्त किये जा रहे हैं। स्पेन में रोजाना 512 लोगों को बेघर किया जा रहा है जो कि पिछले वर्ष से 30 फीसदी ज़्यादा है। अब तक स्पेन में चार लाख से ज़्यादा लोगों को बेघर किया जा चुका है, सिर्फ वर्ष 2012 के दौरान 1,01,034 लोगों को बेघर किया गया है। स्पेन में बढ़ रही बेरोज़गारी और घर छीने जाने से परेशान लोग आत्महत्या कर रहे हैं। आत्महत्या के कारण होने वाली मौतों की गिनती हादसों में होने वाली मौतों से 120 प्रतिशत ज़्यादा है। दूसरी तरफ स्पेन के बैंक, पूँजीपति और राजनेता अमीर होते जा रहे हैं। एक तरफ लाखों लोग बेघर हो गए हैं और फुटपाथ पर सोने को मजबूर हैं, दूसरी तरफ 20 लाख से ज़्यादा मकान खाली पड़े हैं जिनके लिए कोई ख़रीदार नहीं मिल रहा। इस तरह हम देख सकते हैं कि कैसे एक तरफ धन के अम्बार लगे हुए हैं दूसरी तरफ लोगों के लिए दो वक्त की रोटी भी मुश्किल बनी हुई है।
यह मानवीय इतिहास की एक त्रासद घटना ही है कि यहाँ लोग इसलिए कंगाल हो रहे हैं क्योंकि इस्तेमाल के साधन ज़रूरत से ज़्यादा पैदा हो गये हैं। पूँजीवादी ढाँचे में ज़रूरत की चीज़ों की बहुतायत से पैदा हुए संकट के कारण अगर लोग आत्महत्या कर रहे हैं तो इनको पूँजीवाद की तरफ से किये जा रहे ठण्डे कत्ल कहा जाना ज्यादा ठीक होगा। हर वर्ष भूख, सर्दी, सर पर छत न होने के कारण और साधारण सी बीमारियों के कारण लाखों लोगों की इसलिए मृत्यु हो जाती है कि उनके पास भोजन, वस्त्र, घर और दवाओं के लिए पैसे नहीं और दूसरी तरफ इन्हीं चीजों के अम्बार लगे हुए हैं और बेकार पड़ी सड़ रही हैं। इस तरह यह भी पूँजीवाद द्वारा की जा रही वहशी हत्याएँ ही हैं। दिन-ब-दिन यह ढाँचा और ज़्यादा मानवद्वेषी और परजीवी होता जा रहा है और उतनी ही इसको तबाह करने की सम्भावनाएं और ज़रूरत बढती जा रही है। स्पेन की राजनैतिक पार्टियाँ इन आत्महत्याओं पर पूरी कमीनगी से अपनी राजनीति की रोटियाँ सेक रही हैं। विरोधी पक्ष सोशलिस्ट पार्टी (सिर्फ नाम की) के लिए यह मौजूदा सरकार को कोसने और लोगों को लुभावने भाषण सुनाकर आने बाले चुनाव में वोट बटोरने का मौका बन चुका है। मौजूदा सरकार जनता के आक्रोश के चलते कुछ क़ानून बनाकर इन आत्महत्याओं को रोकना चाह रही है। लेकिन चूँकि पूँजीवादी ढाँचे में सरकार पूँजीपति वर्ग की ही सेवक होती है, इसलिए इस “क़ानून” में बैंकरों पर कोई कारवाई नहीं की गयी।
स्पेन में लाखों की संख्या में लोग मौजूदा ढाँचे, पूँजीपतियों और राजनीतिज्ञों के खिलाफ सड़कों पर उतर रहे हैं। लेकिन लोगों के इन विरोध प्रदर्शनों में एक सही क्रान्तिकारी विचारधारा और दिशा की कमी है, जिस कारण ये संघर्ष ज़्यादा कारगर नहीं साबित हो रहे। इन संघर्षों को संगठित ढंग से चलाने, मार्क्सवाद को मार्गदर्शक बनाने और समाजवाद के विचारों की तरफ झुकाव वाले लोगों की गिनती अभी कम है। स्पेन में पूँजी और श्रम के विरोध की वजह से उठे इस चक्रवात का क्या परिणाम होगा, यह तो आने वाला भविष्य ही बतायेगा।
मज़दूर बिगुल, जनवरी-फरवरी 2014
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