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Saturday, April 20, 2013

हरियाणा : माओवाद के नाम पर दलितों और भूमिहीनों का दमन

हरियाणा : माओवाद के नाम पर दलितों और भूमिहीनों का दमन

राजेश कापड़ो

हरियाणा सरकार सन 2005 से ही, विभिन्न जनसंगठनों के सामाजिक, राजनैतिक कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर, झूठे मुकदमे थोप लगातार मानव अधिकारों का हनन कर रही है। लगभग 200 कार्यकर्ताओं को झूठे व राजनीति से प्रेरित मुकदमों में गिरफ्तार किया जा चुका है। इस तरह से फंसाए गए ज्यादातर लोग भूमिहीन व खासतौर से दलित के रूप में जाने जानेवाले निचली जातियों के गरीब किसान हैं। यमुनानगर जिले के एक देहाती मजदूर व किसान संगठन शिवालिक जनसंघर्ष मंच (एस.जे.एम) के नेता और कार्यकर्ता साढ़े तीन सालों से सलाखों के पीछे हैं। दूसरे संगठन जैसे कि छात्र संगठन जागरूक छात्र मोर्चा (जे.सी.एम) और क्रांतिकारी मजदूर किसान यूनियन (के.एम.के.यू) का भी यही हाल है। इन संगठनों के नेता और कार्यकर्ता भी लगातार कई सालों से सलाखों के पीछे हैं। इन्हें उपनिवेशिक ढांचे की 121, 124ए आई.पी.सी जैसी काली धाराओं के साथ ही साथ 302, 307, 120बी आई.पी.सी आदि में फंसाया हुआ है।

ये सभी हनन केंद्र सरकार के बैनर तले हो रहे हैं, जिस पर मोटे अक्षरों में लिखा है- 'आप्रेशन ग्रीन हंट' उर्फ माओवाद विरोधी कार्रवाई। राज्य में तथाकथित माओवादी हरकतों को काबू में करने के नाम पर हरियाणा की कांग्रेसी सरकार गरीब व भूमिहीन तबकों और उनके देहाती इलाकों के जनसंगठनों के नेत्तृत्व को आतंकित करती रही है। इन संगठनों ने राज्य में, सरकार के खिलाफ ऐसा क्या किया था? सरकार ने इनके साथ ऐसा सलूक क्यों किया? अगर ये संगठन हकीकत में देश विरोधी हरकतों में शामिल थे तो इन संगठनों के कारनामे क्या थे? ये वो जरूरी सवाल हैं जिनके जवाब दिए जाने हैं।

के.एम.के.यू और एस.जे.एम देहाती इलाकों के दो किसान संगठन हैं, जो हरियाणा के जींद, यमुनानगर, कैथल, कुरुक्षेत्र आदि जिलों में सक्रिय थे। के.एम.के.यू की स्थापना देहाती मजदूरों व गरीब किसानों की मांगों, जैसे कि खेती की लागत के दाम बढ़ाना, किसानों द्वारा उपजाई खाद्य फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य हासिल करना, आदि पर हुई थी। सबसे खास बात थी कि के.एम.के.यू ने अपनी जून 2004 की स्थापना के तुरंत बाद ही भूमिहीन किसानों को भूमि सुधारों के लिए संगठित किया। भूमि के पुन: बंटवारे के मामले को खुद भारत सरकार ने नकार दिया था और राज्य स्तर पर विभिन्न राज्य सरकारों ने। यह मुद्दा सभी मुख्य राजनैतिक दलों के राजनैतिक एजेंडे से गायब हो रहा था। देश के भूमिहीन किसान दरिद्रता के जीवन में पिस रहे थे। देशभर में भूमि से जुड़े कई कानून होने के बावजूद, हरियाणा की आबादी का 25 प्रतिशत हिस्सा भूमिहीन है। सभी भूमि सुधार कानून नाम भर के हैं और सिर्फ सरकारी कागजातों में ही मौजूद हैं। ऐसे में सिर्फ के.एम.के.यू ने ही राज्य स्तर पर भूमि के पुन: बंटवारें का मसला उठाया था।

के.एम.के.यू ने न केवल खेती लायक फालतू जमीन का मसला उठाया बल्कि 1.रिहायशी प्लॉट के लिए जमीन, 2.जनवितरण प्रणाली (पी.डी.एस) से जुड़ी मांग, 3.सरकारी खेतिहर जमीन के पट्टे का मसला और भूमिहीन किसानों के व्यापक जनसमुदाय को संगठित करने का काम भी किया। जनविरोधी भ्रष्ट सरकारी अमले ने सरकारी खेतिहर भूमि का बड़ा पट्टा, जो कि दलित जातियों के लिए आरक्षित था, झूठी नीलामियों के जरिए सस्ते दामों पर बड़े जमींदारों के हाथों में सौंप दिया। के.एम.के.यू ने इस कदम के खिलाफ गरीब और भूमिहीन किसानों को संगठित किया और सरकारी जमीन की झूठी नीलामी के खिलाफ आंदोलन किया। यह आंदोलन राज्य के विभिन्न जिलों के कई गांवों में चलाया गया। इस संघर्ष ने गरीब जनता के साथ-साथ खुद सत्ताधारी वर्ग को भी जगा दिया। दमन का हालिया चक्र इसी संघर्ष के बाद शुरु हुआ।

पहले दौर में बड़ी संख्या में लोगों को गिरफ्तार किया गया। के.एम.के.यू के नेता, कार्यकर्ता और समर्थक झूठे मुकदमों में फंसाए गए। वो लोग जो के.एम.के.यू को फंड, खाना, ठिकाना, और दूसरी मदद देते थे, उन्हें भी झूठे केसों में फंसाया गया, और गांव घसौ (जींद) के तकरीबन 50 लोगों को सलाखों के पीछे ठूंस दिया गया। जे.सी.एम छात्र संगठन के कुछ सदस्य जिन्होंने भूमिहीन गरीबों के आंदोलन में शिरकत की थी, उन्हें भी हरियाणा पुलिस ने योजनाबद्ध धरपकड़ों द्वारा गिरफ्तार कर झूठे मुकदमों में फंसा देशद्रोह (धारा 121, 124ए) के मुकदमे थोपे गए। जो कार्यकर्ता बच निकले, उन्हें पुलिस ने फरार घोषित कर, भूमिगत होने पर मजबूर कर दिया।

जे.सी.एम द्वारा प्राइवेट यूनिवर्सिटी बिल के खिलाफ मार्च, 2007 में नरवाना से चंडीगढ़ तक के साईकिल अभियान को राज्य सरकार द्वारा देशविरोधी गतिविधि घोषित कर दिया गया। अभियान को नेत्तृत्व देने वाले और उसमें शिरकत करने वाले छात्रों जिन में लड़कियां भी शामिल थीं, गिरफ्तार किया गया और उन पर केस दर्ज किए गए। उन्हें आठ-नौ महीने की विचाराधीन कैद के बाद जमानत पर छोड़ा गया। यहां तक कि जिला और सेशन कोर्ट ने छात्रों को जमानत देने से मना कर दिया। आखिर में पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट ने उनको जमानत दी।

के.एम.के .यू ने कुरुक्षेत्र जिले के इस्माईलाबाद कस्बे में, शहरी गरीबों के लिए रिहायशी प्लॉटों की मांग को लेकर संघर्ष किया। संघर्ष करने वाले लोगों से देशद्रोही जैसा सलूक किया गया और बूढ़ों, औरतों और बच्चों समेत 15 कार्यकर्ताओं पर देशद्रोह के आरोप में मुकदमे दर्ज किए गए।

साल 2008-09 में सामाजिक और राजनैतिक कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार करने की बाढ़-सी आ गई थी। के.एम.के.यू के दो लोगों राजेश कापड़ो और वेदपाल को जिला कैथल के गांव बालू से गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें धारा 436, 307, 427 आई.पी.सी और 4 पी.डी.पी एक्ट 1984 के तहत फंसाया गया। ये गिरफ्तारियां अगस्त, 2008 में हुई थी।

मई, 2009 के संसदीय चुनावों के मद्देनजर, यमुनानगर जिले में एस.जे.एम ने झूठे संसदीय चुनावों को उजागर करने के लिए चुनावों के बहिष्कार का आह्वान किया। यमुनानगर पुलिस ने 17 अप्रैल, 2009 को बिना किसी शिकायत के खुद ही धारा 124ए, 153, आम्र्स एक्ट, एक्सप्लोसिव एक्ट के तहत छछरौली थाने में एफ.आई.आर नं. 54 दर्ज की और एस.जे.एम की एक कार्यकर्ता पूनम को गिरफ्तार कर लिया, जिसे जींद पुलिस ने भी मई, 2007 में देशद्रोह के झूठे मुकदमे में गिरफ्तार किया था पर बाद में सेशन कोर्ट ने उसे एक अन्य सह-आरोपी के साथ बरी कर दिया था। हिरासत में पूनम के झूठे कबूलनामे की बिनाह पर, करीब 8-10 देहाती नौजवानों को गिरफ्तार किया गया, और झूठे तरीके से इस मुकदमे में घसीटा गया। सभी नौजवान दलित व भूमिहीन परिवारों से थे। ज्यादातर यमुना नदी की रेत की खान में कामगार थे।

एस.जे.एम के एक मुख्य संगठनकत्र्ता सम्राट को दिनदहाड़े एक सरकारी बस से गिरफ्तार करके दो हफ्तों से भी ज्यादा गैरकानूनी हिरासत में रखा गया, और किसी भी कोर्ट में पेश नहीं किया गया। एक अन्य सत्या नामक महिला कार्यकर्ता को, पुरुष कार्यकर्ता संजय और मुकेश के साथ जिले की अलग-अलग जगहों से गिरफ्तार किया गया। ये सभी एक ही जिले और दलित व पिछड़ी जातियों से थे। पुलिस ने तकरीबन 35 कार्यकर्ताओं को हरियाणा भर से गिरफ्तार किया था। अन्य जिलों से जुड़े बहुत से कार्यकर्ताओं को भी इस केस के मद्देनजर गिरफ्तार किया गया था। यमुनानगर पुलिस ने न केवल छछरौली पुलिस थाने में दर्ज एफ.आई.आर नं. 54 की तफतीश की, बल्कि इसने अन्य जिलों के पुलिस स्टेशनों में पड़े अनसुलझे केसों की भी तफतीश की और अन्य बहुत से लोगों को गिरफ्तार कर उन्हें भी यमुनानगर के साथ-साथ उनके अपने जिलों के भी झूठे केसों में फंसाया। यमुनानगर जिला पुलिस द्वारा कैथल के कृष्ण कुमार व सहीराम और जींद के राजीव व गीता पर झूठे केस दर्ज किए गए।

इस संपूर्ण घटनाक्रम में पूरी राज्य मशीनरी शामिल रही। डॉक्टर प्रदीप के साथ सम्राट, संजय, मुकेश, सत्या, गीता और रिंकू इन सभी को गैरकानूनी तौर पर रखा गया और बुरी तरह से प्रताडि़त किया गया। लगभग सभी जिलों में, गुप्त प्रताडऩा कक्ष हैं जो उच्च अधिकारियों की नजदीकी निगरानी में सी.आई.ए पुलिस द्वारा संभाले जाते हैं। ये कक्ष, प्रताडऩा के सभी तरीकों के साजो-सामान से लैस होते हैं। सभी पीडि़तों को इन प्रताडऩा कक्षों में 15 दिनों तक रखा गया और 6 जून, 2009 को पी.यू.सी.आर (पब्लिक यूनियन फॉर सिविल लिबर्टिज) नामक मानव अधिकार संगठनों से जुड़े कुछ जनतांत्रिक संगठनों के कानूनी हस्तक्षेप के बाद यमुनानगर कोर्ट में पेश किया गया, क्योंकि पुलिस अत्याचार के खिलाफ पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट में ये एक याचिका लेकर पहुंच गए थे। कोर्ट द्वारा कानूनी रिमांड की अनुमति मिलने पर इन्हें 15 दिन और पुलिस हिरासत में रखा गया।

समाचार है कि यमुनानगर अदालत ने सम्राट, रिंकू, पूनम, संजय और जगतार को देशद्रोह के आरोप से बरी कर दिया है पर बाकी आरोप अभी चलेंगे।

भूड़ गांव के चरण सिंह, मुकेश, मनवर और बिंटू, इन सभी को अप्रैल, 2009 के शुरुआती हफ्ते में कोर्ट में पेश करने से पहले, गिरफ्तार करके लगभग हफ्ते भर तक गैरकानूनी हिरासत में रखा गया था। इस्माईलपुर गांव के देवी दयाल, बरखा, प्रवीन, संजय, चंदन (70), प्रवीन, पोहला को हत्या के प्रयास के झूठे आरोप में गिरफ्तार किया गया, हालांकि कुछ आरोपी कोर्ट द्वारा बरी कर दिए गए थे। दिनेश उर्फ बिल्ला, सुभाष और गांव मोमडीवाल के संजीव को एफ.आई.आर नं. 54 के तहत गिरफ्तार किया गया। दिनेश उर्फ बिल्ला के साथ गीता, राजेश कापड़ो, वेदपाल, सम्राट, संजीव को जींद जिले में एक अन्य हत्या के झूठे केस में फंसाया गया, जोकि नरवाना सदर थाने में 23 मई, 2008 को अज्ञात लोगों के खिलाफ दर्ज था।

14 मई, 2009 को जींद पुलिस ने, 10/13 गैरकानूनी गतिविधि निरोधक अधिनियम (यू.ए.पी.ए) 1967, 25/54/59 आम्र्स एक्ट 120बी आई.पी.सी के तहत एक झूठी एफ.आई.आर दर्ज की और राजेश कापड़ो, वेदपाल, संजीव को एक गांव अभियान से गिरफ्तार किया। एक ग्रामीण टिल्कू को भी इनके साथ गिरफ्तार किया गया। जबकि मास्टर दिलशेर, एक उभरते हरियाणवी जनतांत्रिक गीत लेखक को वांटेड घोषित किया गया और गांव मंडी कलां (जींद) में उनके मकान पर पुलिस ने छापा मारकर गिरफ्तार किया। उन्हें सी.आई.ए पुलिस द्वारा शारीरिक व मानसिक तौर पर प्रताडि़त किया गया, और बाद में बिना किसी आरोप के बरी कर दिया। उन्हें किसी भी तरह की सामाजिक-राजनैतिक गतिविधियों में शिरकत करने पर, कड़े नतीजे भुगतने की धमकियां दी गई थी। और इसी गांव के देवेंद्र उर्फ काला को भी उसकी शादी के कुछ दिन पहले ही घर से गिरफ्तार कर लिया गया। वह एक देहाती मजदूर था और जे.सी.एम का भूतपूर्व कार्यकर्ता भी। उसे पहले भी 12 अन्य छात्रों के साथ देशद्रोह के झूठे आरोपों में फंसाया गया था, मगर बाद में सेशन कोर्ट द्वारा बरी कर दिया गया था। लेकिन पुलिस ने उसे राजनैतिक मंशा से दोबारा गिरफ्तार किया। स्थानीय अखबारों ने उसकी बेगुनाही को उजागर करते हुए साफ तौर से बताया भी कि वह पुलिस द्वारा गैरकानूनी तरीके से उठाया गया था। उसकी 18 मई को शादी तय थी, मगर वह जींद सी.आई.ए में पुलिस रिमांड पर था। वह पांच महीने बाद घर लौटा मगर तब तक उसकी शादी टूट चुकी थी। उसने खुदकुशी करके अपनी जिंदगी का मायूसी भरा खात्मा कर लिया।

कैथल पुलिस ने जींद पुलिस के साथ तालमेल बनाकर गांव बालू में शमशेर सिंह जिसकी तीन साल पहले मौत हो चुकी थी, उसे गिरफ्तार करने के लिए छापा मारा। इसी गांव के कृष्ण कुमार को गिरफ्तार करने के लिए पुलिस ने धड़ाधड़ कई छापे मारे। उसके बड़े भाई धीरज को बंदी बनाकर कृष्ण पर आत्मसमर्पण करने का दबाव बनाया गया। धीरज को भी बुरी तरह से प्रताडि़त किया गया, आखिरकार इस तरह पुलिस ने कृष्ण को गिरफ्तार कर लिया। के.एम.के.यू कार्यकर्ताओं के कुछ मोबाईल नंबर ढूंढने के लिए एक एस.टी.डी बूथ मालिक को भी पुलिस द्वारा घेरा गया। पुलिस ने उसे इतना आतंकित किया कि उसने इस घटना के बाद अपना बिजनेस ही बंद कर दिया।

लगभग तीन साल के अरसे के बाद भी पुलिस धारा 173 सी.आर.पी.सी व चार्ज शीट के तहत आखिरी तफतीश की रिर्पोट जमा नहीं करा पायी। तफतीश की यह नाकामयाबी इस सारे मुकदमे को एक अकेला झूठ साबित करती है। जबरदस्त दमन के इस मार्ग को प्रशस्त करने में मीडिया एक खास भूमिका अदा करता है। यह राजनैतिक आंदोलन से जुड़ी खबरों को सनसनीखेज बनाता है। साल 2000 से ही, बहुत सारी सनसनीखेज खबरें लगभग सभी दैनिक अखबारों में कई बार छापी गईं, कि राज्य में कुछ जनसंगठन माओवादी गतिविधियों में शामिल हैं या कुछ खास संगठन सरकार की नजर में हैं, इत्यादि। एक तरफ मीडिया पुलिस को सख्ती करने के लिए उकसाती रही, और दूसरी तरफ पुलिस ज्यादत्तियों पर गौर करने की बजाए, मुंह पर पट्टी बांधे रही। ये हालात पुलिस को जनतांत्रिक आंदोलनों का दमन करने के लिए अनुकूल माहौल देते रहे। इस घटनाक्रम पर सभी विपक्षी दल भी चुप्पी साधे रहे, और किसी भी तरह की राजनैतिक या अन्य कोई दखलंदाजी नहीं की।

कुछ पीडि़त कैद के लंबे दौर के बाद जमानत पर रिहा हो चुके हैं। पर वे राज्य और साथ ही साथ केंद्र की भी जांच एजेंसियों की लगातार निगरानी में हैं। हालिया बरी हुए सामाजिक कार्यकर्ताओं पर दबाव बनाने के लिए ये जांच एजेंसियां उन्हें गैरकानूनी तरीके से गंभीर नतीजों के प्रति लगातार धमकाती रहती हैं। इसी गैरकानूनी चलन से हिसार की सी.आई.ए पुलिस ने राजेश कापड़ो को पूरे एक दिन के लिए बंधक बनाए रखा। हिसार पुलिस ने 2 फरवरी, 2012 की अल सुबह गांव कापड़ो में राजेश कापड़ो की रिहायश पर छापा मारा, उन्होंने मकान की तलाशी ली और उसे गिरफ्तार कर लिया। 2 फरवरी, 2012 की तारीख तरणजीत कौर जे.एम (आई) सी नरवाना की कोर्ट में सुनवाई के लिए तय थी, इसी दिन पुलिस ने उसे बंदी बनाया और बाद में छोड़ दिया। पुलिस जानबूझ कर उसे कोर्ट से गैरहाजिर करके कोर्ट की प्रक्रिया को बाधित करना चाहती थी, ताकि नतीजतन जमानत की शर्तों के उल्लंघन के जुर्म में कोर्ट उसके खिलाफ गिरफ्तारी का वारंट जारी कर दे।

राज्य में जगह-जगह हाई-टेक होल्डिंगों पर मोटे अक्षरों में हरियाणा सरकार की उपलब्धियों के इश्तिहार लगे हैं जो हरियाणा को खूबसूरत रंगों में ऊंची विकास दर, बढ़ती प्रति व्यक्ति आय, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, विकास आदि के साथ पेश करते हैं। लेकिन इस तस्वीर का स्याह पहलू गैरहाजिर है जो राज्य के दलितों और 25 प्रतिशत भूमिहीनों के नारकीय जीवन की कथा छिपाए है।

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