स्थापित करणे के लिये सार्थक प्रयास करणे की बजाय
भावनात्मक प्रतिक्रियावाद में उलझ जाते है!
परिवर्तनकारी उमदा सोच रखनेवाले आंबेडकरवादी बुद्धीजीवीयोन्की कमी नही है.लेकिन अक्सर ये देखा गया है की,हमारे बुद्धीजीवी आंबेडकरवाद को एक गतिशील दर्शन के तौर पर स्थापित करणे के लिये सार्थक प्रयास करणे की बजाय भावनात्मक प्रतिक्रियावाद में उलझ जाते है.भारत में जैसे-जैसे आंबेडकरवादी दर्शन दृढमूल होता जा रहा है उसी अनुपात में जाती को विखंडीत करनेवाले जातीसंघर्ष तीव्रतम गती से बढ रहे है.परिणामस्वरूप जातीय आधार पर सामाजिक और आर्थिक भेदभाव से ग्रस्त लोग अपनी जातीय अस्मिता को दोय्यम स्थान पर रखके दलित नाम से एक वर्ग में गोलबंद हो रहे है.फलस्वरूप वह कई प्रांतो में यह वर्ग सत्ता के प्रतियोगी वर्ग बनकर उभरे है.मंडलोत्तर काल के पिछले तीन दशको यह प्रक्रिया तेज हुई है. ब्राह्मीनवादी समाजव्यवस्था को इस प्रक्रिया से सबसे बडा खतरा पैदा हुआ है.इस प्रक्रिया को प्रतिक्रांती में तबदील करणे के उद्देश्य से ब्राह्मिन्वादी बुद्धीजीवियोने तीन सिरे पर काम करना शुरू किया है.१)सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को आक्रमक तरीके से प्रचारित करना (RSS,BJP और उनके छत्रछाया में पलने वाले विभिन्न NGO के द्वारा ) २)वैश्विकरण को अनिर्बंध तरीके से अपनाकर सार्वजनिक उप्क्रमो का विनियंत्रण करना और जातीय पून्जीवाद को बढावा देना.(RSS,BJP और CONGRESS CPI ,CPM और बुर्ज्वा कृषक जातियो द्वारा चलाये जाने वाली क्षेत्रीय पार्टीयो के द्वारा ) ३) सामाजिक अस्मिता के आधार पर गोलबंद होकर "दलित" नाम से सत्ता के प्रतियोगी वर्ग में तबदील होने के प्रयासो को असफल बनाना ( सशस्त्र क्रांती के समर्थक कम्युनिस्ट ग्रुप CPI (Marxist-Leninist ),CPI-Liberation,CPI(Maoist) Neo socialist ये तीनो तबके दिखावा के तौर पर भले हि अपनी अलग पहचान दिखते है. लेकिन उनके सामाजिक संस्कार,सोचने का तरीका,वाद-विवाद की शैली इसमे आश्चर्यकारक समानता है.इन तबको की अगुवाई करणेवाले बुद्धीजीवी युवा सामाजिक तथा आर्थिक समानता के घोर विरोध की शिक्षा देनेवाली भारतीय उच्च शैक्षिक संस्थाये जैसे की IITs,IIMS,AIMS,JNU,DU तथा देश के बडे शहरो में स्थित विश्वविद्यालयो में शिक्षित हुए है.इसलिये उनकी मानसिकता सामाजिक तथा आर्थिक समानता प्रस्थापित करणे के प्रयासो का घोर विरोध करनेवाली है.ये बुद्धीजीवी युवा जातीविरोधी संघर्ष के सबसे बडे हथियार आरक्षण तथा जातीविरोधी संघर्ष के सबसे के सबसे परिणामकारी दर्शन आंबेडकरवाद के घोर विरोधी है.ये साबित करता है की उनका Motivational Force ब्राह्मीनवाद ही है.इनमे से तिसरा गुट, जो जातीय आधार पर सामाजिक और आर्थिक भेदभाव से ग्रस्त लोगो द्वारा अपनी जातीय अस्मिता को दोय्यम स्थान पर रखके "दलित" नाम से सत्ता के प्रतियोगी वर्ग में तबदील होने के प्रयासो को असफल बनाने की रणनीती पर अंमल करता है, ( सशस्त्र क्रांती के समर्थक कम्युनिस्ट ग्रुप CPI (Marxist-Leninist ),CPI-Liberation,CPI(Maoist) Neo socialist,etc. ) हमारा सबसे बडा दुश्मन है.ये गुट Methodological आधार पर बहस करणे का दिखावा करता है.जाती के प्रश्न को अहमियत देणे का दावा करता है.जाति-उन्मूलन की ऐतिहासिक-वैज्ञानिक, तर्कसंगत परियोजना प्रस्तुत करणे का दावा करता है.लेकिन जाती उन्मूलन के प्रयास करनेवाले फुले-पेरियार-डॉ.आंबेडकर इनके समुचे अस्तित्व को नकारते है.इनके अनुसार डॉ.आंबेडकर ने इतिहास, दर्शन, राजनीति, अर्थशास्त्र -- इन सभी क्षेत्रों का गहराई से अध्ययन नही किया था. डॉ.आंबेडकर का समुचा चिन्तन अमौलिक था, अगम्भीर था, अन्तरविरोधों से भरा था और ग़लत था.इस गुट के इन उक्साने वाले टिप्पणीयो पर हमे ध्यान देणे की जरुरत नही है.क्योकी उनका उद्देश ही हमे हमारे बुनियादी संघर्ष से ध्यान हटाकर निरर्थक बहस में उल्झाना है..इन तथ्यो को ध्यान में रख कर मै आंबेडकर वादी बुद्धीजीवियो से अपील करता हू की अरविंद ट्रस्ट के मुटठीभर अभिभावी(hegemonic) ब्राह्मीनवादी गुट के पूर्वनिर्धारित तथ्यो को थोपनेवली बहस में हिस्सा न लेते हुए हमे बदलते परिवेश तथा ज्ञान-विज्ञान की तरक्की को देखते हुए हमे आंबेडकरवाद को तर्कपूर्ण दृष्टी से परिभाषित करना होगा.आंबेडकरवाद एक विश्व दृष्टीकोन है यह साबित करना होगा. भारत की भौतिक,सामाजिक स्थिती का वैज्ञानिक अध्ययन कर आज की समस्याओ को छुडाने के लिये आंबेडकरवाद की उपयुक्तता को प्रस्थापित करना होगा — with S.r. Darapuri and 18 others.
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