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Thursday, April 18, 2013

Fwd: [अपना मोर्चा] A IT ( ARYAN INVASION THEORY ) की मूल जड़ ऋग्वेद...



---------- Forwarded message ----------
From: Ashok Dusadh <notification+kr4marbae4mn@facebookmail.com>
Date: 2013/4/18
Subject: [अपना मोर्चा] A IT ( ARYAN INVASION THEORY ) की मूल जड़ ऋग्वेद...
To: अपना मोर्चा <ApnaMorcha@groups.facebook.com>


A IT ( ARYAN INVASION THEORY ) की मूल जड़...
Ashok Dusadh 8:32pm Apr 18
A IT ( ARYAN INVASION THEORY ) की मूल जड़ ऋग्वेद की पुरानतम होने पर टिका है . ऋग्वेद ही वह मूल जड़ है जो आर्यन आक्रमण को सिद्ध करती है और अपने आर्य नस्ल को विजेता घोषित करती है ,जबकि पूरा ऋग्वेद में सभी बहादुरी की किस्से इंद्रा केन्द्रित है ,और ऋषियों में याचना ,भय ,लोभ ,दान लेने की प्रवृति को निरंतर हम ऋचाओं में देख सकते है .यह एक अनिश्चित जीवनशैली की आपदाओं को संबोधित कबीलाई समाज का भयाक्रांत 'लोकगीत ' जैसा मालूम पढता है .अब इसके काल का कैसे निर्धारण किया गया है ,यह अबूझ पहेली है . सिन्धु -घाटी सभ्यता के तुरंत बाद ऋग्वैदिक काल को प्रतिस्थापित कर दिया जाता है ,क्यों ? सवाल :--
1 ) अभी तक जो पाण्डुलिपि मिली है ऋग्वेद का वह देवनागरी लिपि में है , देवनागरी लिपि का अस्तित्व पहली शताब्दी से पहले नहीं मिलता , जब लिपि ही नहीं थी ग्रन्थ का लिखित रूप से आबद्ध करना असंभव जान पड़ता है , हाँ ,ऋग्वेद को श्रुति भी कहते है लोग ,यानि सुनकर याद करना ,अगर मान भी लें की यह श्रुति थी इसका समर्थन ई . पु . का कोई पुरात्तात्विक साक्ष्य नहीं करता ,न ही प्रमाण मिलता है की संस्कृत कोई भाषा थी जिसकी लिपि ब्राम्ही हो सकती थी ?

2 ) जैन श्रमण परम्परा की शुरुआत को सबसे पुराना माना जाता है ,कई उत्साही जैनी/कुछ इतिहासकार सिन्धु -घाटी सभ्यता में मिली तपस्वी जैसी तस्वीर को ऋषभ देव अर्थात आदिनाथ को बताते है ,जो पहले तीर्थंकर थे ,मगर यहाँ भ्रम हो जाता है क्योंकि जैन धार्मिक ग्रन्थ ऋषभ देव को अयोध्या राज्य के इक्ष्वाकु वंश का राजकुमार बताते है , यहाँ सिन्धु -घाटी और अयोध्या में कोई रिलेशन अभी तक कोई इतिहासकार अभी स्थापित कर नहीं पाया . मगर दिलचस्प बात है की ऋग्वेद में श्रमण परम्परा के पहले तीर्थंकर 'ऋषभ' का नाम सर्ग 1. 8 9 6 में आता है ,और बाइसवे तीर्थंकर अरिष्ट नेमी का नाम सर्ग 1 .1 8 0 ,1 0 ;1 0 ,1 7 8 .1 में . सवाल यह है की दोनों ऋषियों का सम्बन्ध उतर भारत के क्रमशः उतर प्रदेश एवं बिहार से था ,और ऋग्वेद का सप्त सिन्धु से, तो इनलोगों के विषय में वैदिक ऋषियों का जानकारी का श्रोत क्या हो सकता है ? पहले ऋषि ऋषभदेव और बाइसवें अरिष्टनेमि के समय अयोध्या ,राजगीर ,हस्तिनापुर , ...आदि विकसित नगर थे ,तो इनकी चर्चा वेद में बाधित करने का क्या उद्देश्य हो सकता है ?
३) ऋग्वेद में ॐ -1 0 2 8 बार ,जन -2 7 5 ,विश -1 7 1 बार ,ब्राह्मण -1 4 बार ,क्षत्रिय -0 9 बार , वैश्य -० 1 बार ,शूद्र -० 1 बार ,कल्प -० 1 बार ,गंगा ० 1 बार ,यमुना -0 3 बार ,गौ -1 7 6 बार ,समुद्र -0 1 बार ....अब यहाँ गंगा ,यमुना ,समुद्र का ऋग्वेद में पाया जाना इस बात की चुगली करता है भले ही आर्य ट्राइब श्रुति को रट कर याद करता हो , मगर भारत में आजीविका खोजते -तलाशते इरान से माइग्रेट कर भारतीय उपमहाद्वीप में आ गया और यहाँ श्रमण सभ्यता से घुल मिलकर उनकी लिपि और भाषा को सीख कर पहली शताब्दी में उतर भारत में कहीं ऋग्वेद को लिपिबद्ध किया . यह वह काल था जब श्रमण सभ्यता को नेस्तनाबूत कर पुष्यमित्र शुङ्ग सत्तासीन हुआ था , यहीं से श्रुति और स्मृति काल प्रारंभ होता है ,नहीं की सिन्धु -घाटी संभ्यता के तुरंत 'अवसान' के बाद ?

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