Palash Biswas On Unique Identity No1.mpg

Unique Identity No2

Please send the LINK to your Addresslist and send me every update, event, development,documents and FEEDBACK . just mail to palashbiswaskl@gmail.com

Website templates

Zia clarifies his timing of declaration of independence

What Mujib Said

Jyoti basu is DEAD

Jyoti Basu: The pragmatist

Dr.B.R. Ambedkar

Memories of Another Day

Memories of Another Day
While my Parents Pulin Babu and basanti Devi were living

"The Day India Burned"--A Documentary On Partition Part-1/9

Partition

Partition of India - refugees displaced by the partition

Friday, April 5, 2013

राजस्थान को गुजरात बनाने से रोक पाना मुश्किल होगा।

राजस्थान को गुजरात बनाने से रोक पाना मुश्किल होगा।

डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'

राजस्थान शुरू से ही शान्ति, सौहार्द, सांस्कृतिक मिठास और मेहमान नवाजी के लिये जाना जाता रहा है, लेकिन पिछले दो दशकों से राजस्थान में ऐसे तत्वों का दबदबा बढा है, जो यहॉं की शान्ति और सौहार्द को तहस-नहस करने पर तुले हुए हैं। इनका एकमात्र लक्ष्य है किसी भी प्रकार से सत्ता पर काबिज होना। ये जब-जब सत्ता में होते हैं या सत्ता के करीब होते हैं, लोगों को लड़ाने के लिये षड़यंत्रों की संरचना करते हैं और प्रायोजित तरीके से ऐसी घटनाओं को अंजाम देते हैं, जिससे लोगों में जातिगत या साम्प्रदायिक घृणा इस सीमा तक बढ जाये कि उनके बीच के संघर्ष को रोका नहीं जा सके और प्रशासन के लिये कानून और व्यवस्था बनाये रखना असम्भव हो जाये।

पिछले दो दिनों में राजस्थान का राजनैतिक माहौल तो गर्मा ही रहा है, लेकिन साथ ही साथ राज्य के साम्प्रदायिक माहौल को बिगाड़ने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी जा रही है। नागौर जिले के मकराना कस्बे में 3 अप्रेल की घटना और राजधानी जयपुर के सांगानेर में 4 अप्रेल की घटनाएँ (साम्प्रदायिक) इसी बात का संकेत हैं। यदि सरकार और प्रशासन ने हालातों को तत्काल समझकर, नियंत्रित नहीं किया तो आने वाले बीस-पच्चीस दिनों की राजनैतिक सरगर्मियों के बीच राज्य के साम्प्रदायिक माहौल को बिगड़ने से रोक पाना असम्भव हो जायेगा।

राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की सबसे बड़ी समस्या ये है कि उन्हें जनता के दु:खदर्द और जनता की दैनिक समस्याओं की असली कारक-भ्रष्ट नौकीशाही के खिलाफ कठोर कार्रवाई करने से डर लगता है। जबकि जनता नौकरशाही और विशेषकर ब्यूरोक्रेसी की मनमानियों से बुरी तरह से त्रस्त है। केवल जनता ही नहीं, बल्कि सत्ताधारी पार्टी के विधायक, जनप्रतिनिधि और पार्टी कार्यकर्ता भी अफसरशाही की मनमानियों  से अत्यधिक व्यथित हैं, लेकिन मुख्यमंत्री गहलोत को अफसरों के खिलाफ कुछ भी सुनना पसन्द नहीं है।

ऐसे हालात में सरकार के विरुद्ध जनता के दिल में स्वाभाविक रूप से गुस्सा उबल रहा है, जिसका फायदा उठाने के लिये सत्ताधारी पार्टी के राजनैतिक प्रतिद्वंद्वी कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते हैं। आजकल राजनीति इसी स्तर पर काम करने लगी है। दूसरी सबसे बड़ी बात ये भी है कि विरोधियों के पास कोई बड़ा और सार्थक राजनैतिक मुद्दा भी नहीं है। क्योंकि गहलोत के वर्तमान कार्यकाल के दौरान डॉ किरोड़ी लाल मीणा की राजनीतक महत्वाकांक्षाओं के चलते गुर्जरों और मीणाओं का टकराव, आपसी सौहार्द में बदल गया है। राज्य में हिन्दू-मुसलमानों के बीच भी कोई बड़ी झड़प नहीं हुई। हॉं सवर्णों द्वारा दलितों का लगातार अपमान करते रहने और दलितों तथा आदिवासियों पर अत्याचार की घटनाएँ अवश्य राज्य में बदस्तूर जारी हैं, जिनको लेकर यहॉं का सवर्ण मीडिया चुप रहता है। जिसके चलते दोनों बड़ी पार्टियों की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ता है, क्योंकि ले-देकर दलितों तथा आदिवासियों को अन्तत: इन्हीं दोनों पार्टियों की शरण में आना मजबूरी रहा है।

ऐसे हालातों में राज्य में पिछले दो दिनों की घटनाएँ इस बात का साफ संकेत देती हैं कि कुछ तत्व इस प्रकार के प्रयास कर सकते हैं कि राज्य को धर्म के नाम पर गुजरात की तरह से आग में झोंक दिया जाये। जिससे सरकार के प्रति जनता में और अधिक रोष व्याप्त हो जाये और हालात सरकार के नियंत्रण से बाहर हो जायें। जिसका लाभ आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनावों के दौरान उठाया जा सके। 

अफसरशाही के प्रति मुख्यमंत्री गहलोत का अटूट प्रेम और अफसरों की लगातार मनमानी दो ऐसे कारण हैं, जो हर आम-ओ-खास को सरकार एवं सत्ताधारी पार्टी के विरुद्ध आवाज उठाने का पर्याप्त कारण प्रदान करते हैं।

मुख्यमंत्री गहलोत के दरबार में जनसुनवाई के लिये जो लोग दूरदराज से जैसे-तैसे जयपुर तक का कठिन  सफर करके पहुँचते हैं, उनके मामलों में मुख्यमंत्री के विशेषाधिकारी की ओर से सम्बंधित अफसर को पत्र लिखकर मामले को समाप्त मान लिया जाता है। जिसका दुष्परिणाम ये हो रहा है कि मुख्यमंत्री के विशेषाधिकारी की ओर से लिखे जाने वाले पत्रों पर कार्रवाई होना तो दूर 90 फीसदी पत्रों का तो निर्धारित समय में मुख्यमंत्री के विशेषाधिकारी को जवाब तक नहीं मिलता है। मुख्यमंत्री के विशेषाधिकारी की ओर से ऐसे मामलों में निगरानी की कोई ऐसी कारगर व्यवस्था नहीं है, जिससे उनको ये ज्ञात हो सके कि जो लोग जनसुनवाई में मुख्यमंत्री के समक्ष उपस्थित हुए, अन्तत: उनको न्याय मिला या नहीं!

अपने विभागीय सचिव, मंत्रियों की नहीं सुनते हैं। आईएएस सीधे मुख्यमंत्री के मुंह लगे हुए हैं। मंत्री पांच वर्ष तक पद और आधी-अधूरी पावर का आनन्द उठा रहे हैं। मीडिया बिका हुआ है। इसके उपरान्त भी सरकार चल रही है और आश्‍चर्यजनक रूप से फिर से सत्ता में आने के सपने भी देख रही है। यदि इन हालातों में भी सरकार फिर से सत्ता में आती है, क्योंकि अनेक विश्‍लेषक ऐसा मानते भी हैं, तो इसके लिये सरकार की उपलब्धियॉं नहीं, बल्कि मुख्य प्रतिपक्ष जिम्मेदार होगा। जो वर्तमान सरकार की तुलना में पूरी तरह से अपनी साख खो चुका है। इस बात का प्रतिपक्ष को भी बखूबी अहसास है। इसी लिए राज्य के शांत माहौल को गर्माने के लिए हर हथकंडे को अपनाने में कोई भी पीछे नहीं है!

दूसरी इसी कमजोरी का राजनैतिक लाभ उठाने के लिये आगामी विधानसभा चुनावों के दौरान राज्य में तीसरी ताकत के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिये मुलायम सिंह, मायावती और डॉ. किरोड़ी लाल मीणा बेताब हैं। यह अलग बात है कि ये तीनों ही कोई बड़ी सफलता अर्जित कर पायेंगे, इसमें जनता को अभी तक सन्देश है।

ऐसे हालातों में सत्तालोलुप दुराचारियों की ओर से वर्तमान सरकार को सत्ता से येनकेन बेदखल करने और इसके लिए सौहार्दप्रिय राजस्थानियों के बीच साम्प्रदायिक वैमनस्यता बढाने के सुनियोजिक प्रयास शुरू हो चुके हैं। अन्यथा फेसबुक पर की गयी टिप्पणी के मामले में पुलिस द्वारा कानूनी कार्रवाई हेतु मामला दर्ज कर लिए जाने के बाद भी, नागौर के मकराना कसबे में दोषी के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई करने की मांग को लेकर समुदाय विशेष के लोगों का सड़क पर हुडदंग मचाने का क्या कारण हो सकता है? इसी प्रकार से जयपुर के सांगानेर क्षेत्र में बाइक खड़ी करने के मामूली से विवाद को लेकर दो समुदायों का आमने-सामने आ जाना और मामले को इतना तूल दे देना कि जयपुर के पुलिस आयुक्त सहित दो दर्जन पुलिस वालों घायल हो जाना, किस बात का संकेत है?

यदि राजस्थान सरकार और सरकार के मुखिया अशोक गहलोत की आँख-नाक-कान के रूप में काम करने वाली अफसरशाही अभी भी पिछले चार साल की तरह ही सोती रही और मनमानी करती रही तो 2013 में राजस्थान को गुजरात बनाने रोक पाना मुश्किल होगा।
Dr. Purushottam Meena 'Nirankush'.jpg Dr. Purushottam Meena 'Nirankush'.jpg
218K

No comments:

Post a Comment